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मां की पुकार और बच्चों की चीखें, 10 साल पुरानी रंजिश ने फिर छीना चैन, गोलियों और पत्थरों के बीच सहमा गांव

दो पक्षों के बीच हिंसा की इस झलक ने गांव की गलियों को जंग का मैदान बना दिया। गुस्से और बदले की आग में झुलसते लोगों ने न सिर्फ एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए बल्कि गोलियां भी दाग दीं।

मां की पुकार और बच्चों की चीखें, 10 साल पुरानी रंजिश ने फिर छीना चैन, गोलियों और पत्थरों के बीच सहमा गांव

भरतपुर जिले के डीग इलाके का एक शांत गांव, गढ़ी मेवात (चोर गढ़ी), अचानक दहशत और खौफ की चपेट में आ गया। दोपहर का वक्त, जब लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे, तभी एक पुरानी रंजिश ने ऐसा उफान मारा कि पूरा गांव गोलियों और पत्थरों की आवाज से थर्रा उठा। दो पक्षों के बीच हिंसा की इस झलक ने गांव की गलियों को जंग का मैदान बना दिया। गुस्से और बदले की आग में झुलसते लोगों ने न सिर्फ एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए बल्कि गोलियां भी दाग दीं। 16 लोग गोली लगने से घायल हो गए, और कुल 20 लोग इस हिंसा की चपेट में आ गए। इस खौफनाक मंजर ने पूरे गांव को सहमा दिया।

खुर्शीद की मौत की आग अभी ठंडी नहीं हुई थी

ये दुश्मनी कोई नई नहीं थी। 10 साल पहले, 2014 में, इसी गांव में खुर्शीद नाम के शख्स की हत्या ने दो पक्षों के बीच नफरत की लकीर खींच दी थी। रविवार को हुई हिंसा ने इस लकीर को गहरा कर दिया। खुर्शीद के बेटे नासिर पर गोलियां बरसाई गईं। घायल नासिर का चेहरा देखकर गांव वालों की आंखों में बीते दस साल की दर्दनाक यादें ताजा हो गईं।

चीखें, खून और सहमा हुआ गांव

घटना के समय गांव में जो हुआ, वो किसी डरावनी कहानी से कम नहीं था। बच्चे और महिलाएं घरों में दुबक गए। गोलियों की आवाजें हर दिल में खौफ भर रही थीं। कुछ लोगों ने घटना के वीडियो बना लिए, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। सड़कों पर खून के धब्बे, घरों की टूटी खिड़कियां और सहमे हुए ग्रामीण इस बात का गवाह हैं कि इंसानियत किस हद तक गिर सकती है।

पुलिस ने संभाली कमान, लेकिन गांव में खौफ बरकरार

घटना की सूचना पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर हालात को काबू में किया। कई लोगों को हिरासत में लिया गया, लेकिन गांव का माहौल अब भी तनावपूर्ण है। घायलों का इलाज अस्पताल में चल रहा है। गांव में हर तरफ सन्नाटा पसरा है। जो गलियां कभी बच्चों की हंसी-खुशी से गुलजार रहती थीं, वहां अब सहमी हुई खामोशी है। ग्रामीणों की आंखों में सवाल हैं—ये खून-खराबा कब थमेगा?

क्या ये नफरत की दास्तां कभी खत्म होगी?

ये घटना हमें एक बड़ा सवाल दे जाती है—क्या पुरानी रंजिशों की आग में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी झोंक देंगे? खुर्शीद के परिवार की कहानी सिर्फ गढ़ी मेवात गांव की नहीं, बल्कि उस समाज की है जहां बदले की भावना इंसानियत को मार डालती है। इस गांव के हर घर में दर्द की एक अलग कहानी है। ये घटना सिर्फ हिंसा का नहीं, बल्कि एक सामाजिक बीमारी का प्रमाण है। क्या वक्त नहीं आ गया कि हम इन नफरतों की जड़ों को काटकर नए रिश्तों की नींव रखें?