11 साल की सजा, और निर्दोषी का संघर्ष, कैसे पुलिस की भूल ने छीने 11 साल ? अनोखीलाल की अनोखी कहानी
11 साल पहले एक निर्दोष व्यक्ति अनोखीलाल को बलात्कार और हत्या के आरोप में फांसी की सजा दी गई, लेकिन 2023 में अदालत ने डीएनए सबूतों की नई जांच के बाद उन्हें बरी कर दिया। इस केस ने सिस्टम की खामियों और न्याय प्रक्रिया की धीमी गति को उजागर किया।
साल 2013 की एक ठंडी सुबह, मध्य प्रदेश के एक गांव में 21 वर्षीय अनोखीलाल को बलात्कार और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। नौ साल की एक मासूम बच्ची के साथ हुई इस दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। निर्भया कांड की गर्माहट के बीच, पुलिस और अदालत पर न्याय देने का जबरदस्त दबाव था। नतीजतन, महज 13 दिनों में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
पुलिस की हड़बड़ी और न्याय की कीमत
अनोखीलाल के खिलाफ सबसे बड़ा सुबूत डीएनए रिपोर्ट था, लेकिन इसे कभी सही तरीके से जांचा ही नहीं गया। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के दम पर तीन बार उन्हें फांसी की सजा दी गई। न वकील को तैयारी का वक्त मिला, न ही अनोखीलाल को अपनी बात रखने का मौका।
11 साल का अंधेरा: मौत के साये में जिंदगी
जेल की चार दीवारों में, अनोखीलाल ने 4,033 दिन बिताए। इस दौरान उन्होंने आत्महत्या के ख्यालों से जूझा, लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। जेल में उन्होंने पढ़ाई शुरू की, योग और ध्यान के जरिए अपनी मानसिक स्थिति को संभाला।
न्याय की ओर नया मोड़
साल 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में गंभीर खामियों को स्वीकारते हुए दोबारा सुनवाई के आदेश दिए। जब डीएनए रिपोर्ट की गहराई से जांच हुई, तो यह सामने आया कि बच्ची के शरीर से मिले डीएनए किसी और का था, न कि अनोखीलाल का।
बरी, लेकिन अधूरा न्याय
साल 2023 में, खंडवा अदालत ने आखिरकार अनोखीलाल को बरी कर दिया। लेकिन इस फैसले ने न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए। क्या पुलिस की लापरवाही और अदालत की जल्दबाजी ने एक मासूम व्यक्ति की जिंदगी बर्बाद कर दी?
अनोखीलाल की नई शुरुआत
11 साल बाद घर लौटे अनोखीलाल अब एक बदले हुए इंसान हैं। अपनी मातृभाषा तक भूल चुके अनोखीलाल के लिए अब जिंदगी एक नया अध्याय लिखने की चुनौती है। यह कहानी सिर्फ उनके संघर्ष की नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों की भी है, जो किसी की जिंदगी का 11 साल छीन सकती हैं।