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1993 Train Blast Case का वो आतंकी, जिसका राजस्थान में उड़ा हाथ और नाम पड़ा 'टुंडा', अब है जेल से बाहर !

साल 1993 जब आधी रात का वक्त था, तभी अचानक कई ट्रेनों में विस्फोट होता है. जिसकी खबर आग की तरह चारों ओर फैल जाती है. लखनऊ, कानपुर से लेकर मुंबई में राजधानी एक्सप्रेस सहित 6 ट्रेनों में सिलसिलेवार ब्लास्ट हुए थे, जिसने सबको हिलाकर रख दिया था. इसी केस में एक आरोपी भी था जिसका राजस्थान से कनेक्शन रहा है. 

1993 Train Blast Case का वो आतंकी, जिसका राजस्थान में उड़ा हाथ और नाम पड़ा 'टुंडा', अब है जेल से बाहर !

साल 1992, दिन 6 दिसंबर, ये कोई आम तारीख नहीं है, ये वही दिन था जब लगभग 2 लाख कार सेवक राम मंदिर का सपना लिए बाबरी मस्जिद पहुंच थे, इनमें से हजारों लोग जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे, नारा ये भी गूंज रहा था कि राम लला आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, इसकी गूंज अयोध्या में सुनाई दे रही थी. जिसकी गूंज कुछ विशेष समुदाय के लोग बर्दाश्त नहीं कर पाए थे. ऐसा हम नहीं कुछ रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया जाता है. 

जब 1993 ब्लास्ट केस में आया नाम
ठीक इसके एक साल बाद यानी 5-6 दिसंबर, साल 1993 जब आधी रात का वक्त था, तभी अचानक कई ट्रेनों में विस्फोट होता है. जिसकी खबर आग की तरह चारों ओर फैल जाती है. लखनऊ, कानपुर से लेकर मुंबई में राजधानी एक्सप्रेस सहित 6 ट्रेनों में सिलसिलेवार ब्लास्ट हुए थे, जिसने सबको हिलाकर रख दिया था. दिल्ली में बैठी सरकार के भी हाथ-पांव ढीले पड़ गए था. चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल था. आज भी बहुत से लोगों के जहन में इस ट्रेन ब्लास्ट की यादें हैं जो 1993 में जिंदा थे या फिर बाद में उन्होंने इस घटना के बारे में पढ़ा. लेकिन इसी केस से जुड़ा एक ऐसा भी नाम था जिसका कनेक्शन राजस्थान से था. ये नाम कोई और नहीं बल्कि अब्दुल करीम टुंडा का था. जो आतंकी गतिविधियों में शामिल था. 

दिल्ली में जन्मा, दो शादियां भी की
मीडिया में छपी खबरों की मानें तो साल 1943 में दिल्ली के छत्तालाल मियां में अब्दुल करीम का एक गरीब परिवार में जन्म हुआ, उसकी हरकतें बचपन से ही ठीक नहीं थी, पिता लोहा का कारोबार करते थे. लेकिन करीम की हरकतों से वो परेशान हो जाते थे, एक दिन उन्होंने दिल्ली छोड़ने का ही मन बना लिया और वो गाजियाबाद चले गए, जहां करीम ने अपने भाइयों के साथ मिलकर बढ़ई का काम सीखा, जिसके बाद पिता ने जरीना से टुंडा की शादी करा दी, फिर साल 1981 आते आते टुंडा अपनी बेगम को छोड़कर लापता हो गया, और फिर जब घर कुछ समय बाद लौटा तो दूसरी बेगम जोकि अहमदाबाद निवासी थी वो मुमताज उसके साथ थी.

रिश्तेदारों की मौत के बाद पकड़ी क्राइम की राह
बताया जाता है कि टुंडा की गतिविधियां संदिग्ध थी. वो कई-कई दिनों तक घर नहीं आता था. इसके बाद जब वो आया तो कपड़े का कारोबार करने लगा और मुंबई चला गया, जहां वो रिश्तेदारों के पास रहने लगा, लेकिन उसके रिश्तेदार भी भिवंडी के दंगों में मार दिए गए, जिसके बाद टुंडा की जिंदगी में एक बड़ा परिवर्तन आया और उसने आतंकवाद की राह पकड़ ली और वो धीरे-धीरे आतंकी संगठनों के संपर्क में भी आ गया. 

जब अब्दुल करीम का पड़ा 'टुंडा' नाम
कई न्यूजपेपर्स में दावा किया जाता है कि 1985 में राजस्थान में अब्दुल आया हुआ था तभी टोंक जिले की एक मस्जिद में वो कुछ युवाओं को पाइप गन चलाकर दिखा रहा था तभी गन फट गई और उसका एक हाथ उड़ गया, जिसके बाद उसका नाम अब्दुल करीम टुंडा पड़ गया, आपको बता दें अब्दुल करीम भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में 20 आतंकवादियों में भी शुमार था. Times of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस लिस्ट में लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मौलाना मसूद अजहर और दाऊद इब्राहिम सहित कई अन्य नाम शामिल हैं और इनके साथ भी टुंडा का नाम जोड़ा गया था. लेकिन हाल ही में कुछ समय पहले 1993 में पांच बड़े शहरों में हुए सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में अजमेर टाडा कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया और टुंडा को बरी कर दिया था