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बीएपी नेता राजकुमार रोत का लिखा पत्र हुआ वायरल, लोकसभा में करेंगे ‘भील प्रदेश’ की मांग

राजस्थान के आदिवासी समुदाय ने एक बार फिर अपनी विशिष्ट पहचान और अधिकारों के लिए अलग राज्य 'भील प्रदेश' की मांग उठाई है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने इस मांग को लोकसभा में नियम 377 के तहत उठाया है। उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को जोड़कर एक अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया है। 

बीएपी नेता राजकुमार रोत का लिखा पत्र हुआ वायरल, लोकसभा में करेंगे ‘भील प्रदेश’ की मांग

राजस्थान में इस समय आदिवासी समुदाय अपने लिए एक अलग राज्य 'भील प्रदेश' की मांग कर रहे हैं और इसको ही अभी जोर दिया जा रहा है। अब इस मामले पर राज्य में सियासत भी काफी गर्मा रही है और इसकी मांग लोकसभा में भी पहुंच गई है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने इस मुद्दे की सख्ती से मांग कर रहे हैं। उन्होंने इस प्रदेश को बनाने की मांग नियम 377 के तहत की है, इसके पहले उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात में भी उन्होंने यह मांग रखी थी।

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भील प्रदेश बनाने की मांग

बता दें कि इस मांग को लेकर बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने एक पत्र भी लिखा, जो इस समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर वायरल हो रहा है। इस पत्र में लिखा है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में भील समुदाय की अलग पहचान है। भारत को मिली आजादी के बाद समान संस्कृति वाले इलाकों को राज्यों में विभाजित कर दिया गया था, जिससे आदिवासियों की पहचान ही खत्म हो गई है। 

किन क्षेत्रों की भील प्रदेश में जोड़ने की मांग

बीएपी सांसद ने इस पत्र में कई जिलों के नाम भी लिखे हैं, जिसको भील प्रदेश में शामिल करने की मांग की जा रही है। इस प्रदेश में डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, जालौर, सिरोही, पाली, राजसमंद, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़, कोटा और बारां जैसे जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, और महाराष्ट्र के कुछ अन्य जिलों को भी इसमें शामिल होने की बात की जा रही है।

इतिहास से जुड़ी है ये मांग

राजकुमार रोत ने कहा कि साल 1913 में गोविंद गुरू के नेतृत्व में मानगढ़ में ऐतिहासिक आंदोलन का जिक्र किया गया है, और उस समय में लाखों भील आदिवासियों ने अपनी मांगों को उठाया था। इसके विरोध में अंग्रेजों और रजवाड़ों ने गोली चलाई थी जिसमें 1500 से ज्यादा आदिवासी मारे गए थे।