Diwali 2024: चीन में हुए एक हादसे से हुई पटाखे की खोज, जाने कैसे पड़ा नाम ?

Diwali 2024: चीन में हुए एक हादसे से हुई पटाखे की खोज, जाने कैसे पड़ा नाम ?

Date: Oct 30, 2024

By: Mansi Yadav, Bharatraftar

पटाखे

पटाखों के बिना दिवाली अधूरी है| खुशियां मनाने के लिए दुनियाभर के लोग पटाखों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी शुरुआत कब और कहां हुई और उसे सबसे पहले कहां बनाया गया? 

पटाखों की शुरुआत

पटाखों की शुरुआत को लेकर कई प्रकार की कहानियां हैं, लेकिन कुछ इतिहासकार इसकी शुरुआत और खोज चीन में बताते हैं| बताया जाता है कि छठी सदी में ही चीन में पटाखों की शुरूआत एक दुर्घटना के साथ हो गई थी| 

हादसे से हुई खोज

एक खाना बनाने वाले रसोइए ने गलती से सॉल्टपीटर आग में फेंका, जिसके बाद उससे रंगीन लपटें निकलीं. इसके बाद रसोइए ने इसमें कोयले और सल्फर को मिलाकर उसका चूर्ण भी इसमें डाला, जिसके बाद काफी तेज धमाका हुआ और रंगीन लपटें भी निकलीं. इस धमाके के साथ ही बारूद और पटाखे की खोज हुई|

एक और कहानी

चीन में बारूद के मिलने के प्रमाण की एक और कहानी है| इस कहानी के मुताबिक चीन में करीब 22 सौ वर्ष पहले लोग बांस को आग में डाल देते थे और गर्म होने पर इसकी गांठ फट जाती थी, इसकी आवाज काफी ज्यादा होती थी| 

आतिशबाजी की परंपरा

चीनी लोग उस समय मानते थे कि बांस के फटने की आवाज से डरकर बुरी आत्माएं भाग जाएंगी, बुरे विचार भी दूर हो जाएंगे और सुख-शांति करीब आएगी, इसलिए वो प्रमुख त्योहारों पर यह काम करते थे| इसके बाद यहीं से आतिशबाजी की परंपरा शुरू हुई| 

महाभारत काल का किस्सा

महाभारत काल से भी इसका एक किस्सा जुड़ा है| गौड़ मराठी संत कवि एकनाथ अपनी किताब में साल 1570 में लिखी गई एक कविता को शामिल किया है जिसमें बताया गया है कि रुक्मिणी और भगवान कृष्ण के विवाह में आतिशबाजी की गई|

भारत में कब आए पटाखे?

भारत में पटाखों का इतिहास 15वीं सदी से भी पुराना है, जिसकी झलक सदियों पुरानी पेंटिंग्स में देखने को मिलती है, जिसमें फुलझड़ियों और आतिशबाजी के दृश्य उकेरे गए हैं| 

पटाखा नाम कैसे पड़ा ?

19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में बारूद भरकर पटाखा बनाने का ट्रेंड था| बारूद भरने के बाद उस मटकी को जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था, जिससे रोशनी और आवाज होती थी. इसी ‘पटकने’ के कारण इसका नाम ‘पटाखा’ पड़ा| 

पटाखा बनाने का सबसे बड़ा केंद्र

भारत में तमिलनाडु का शिवकाशी पटाखा बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है, लेकिन इसकी शुरुआत अंग्रेजी सरकार के दौर में कलकत्ता में हुआ| यहीं पर आधुनिक भारत की पहली पटाखा फैक्ट्री लगी, जो बाद में शिवकाशी ट्रांसफर हो गई| यहां देश के 80% पटाखों का निर्माण होता है|

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