बंगाली शादियों में होने वाली शाखा पोला की रस्म क्यों है खास, क्या है कहानी ?

बंगाली शादियों में होने वाली शाखा पोला की रस्म क्यों है खास, क्या है कहानी ?

Date: Aug 22, 2024

By: Mansi Yadav, Bharatraftar

शाखा पोला

शाखा पोला पहनने की परंपरा न केवल एक सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि परिवार की खुशहाली और पति की लंबी उम्र के लिए शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं, शाखा पोला क्या है, और क्यों यह हर बंगाली विवाहित महिला के लिए ये इतना खास है।

शाखा पोला क्या है?

शाखा पोला दो अलग-अलग चूड़ियों का जोड़ा होता है। ‘शाखा’ का रंग सफेद होता है जो शंख से बनी होती है और ‘पोला’ लाल मूंगे की चूड़ी होती है। इसे ज्यादा बंगाली विवाहित महिलाएं पहनती हैं। 

क्या है परंपरा?

शाखा पोला का खासकर बंगाल, असम और उड़ीसा जैसे पूर्वी राज्यों में ज्यादा प्रचलन में है। बंगाल में जब किसी लड़की की शादी होती है, तब उसे ‘शाखा पोला’ पहनाया जाता हैं। इसे पहनने का मतलब है कि वह अब विवाहित है और यह उसके सुहाग का प्रतीक है।

धार्मिक महत्व

शाखा पोला का धार्मिक महत्व ये है कि इसे पहनने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और महिला का जीवन खुशहाल रहता है। सफेद शंख से बनी शाखा पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है, जबकि लाल मूंगे से बनी पोला ऊर्जा का प्रतीक है। यह पति की लम्बी उम्र और सुख शांति के लिए पहननी जाती हैं।

कैसे शुरू हुई शाखा पोला की रस्म?

पुरानी लोक कथाओं के अनुसार, इस की रस्म की शुरुआत गरीब मछुआरों द्वारा हुई। गरीब मछुआरों के पास शादी में अपनी बेटी को मंहगे आभूषण देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वे समुद्र से शंख और कोरल निकालकर इसे कंगन बनाकर बेटी को देते थे। तब से बंगाली शादियों में शाखा पोला की रस्म की शुरुआत मानी जाती है।

रस्म का महत्व

शादी के दिन दुल्हन की मां बेटी को शाखा पोला पहनाकर नए जीवन को सुखी बनाने और पति के वंश को आगे बढ़ाने का आशीर्वाद देती है, इसलिए बंगाल में शादीशुदा महिला के लिए शाखा पोला का विशेष महत्व होता है।

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