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पाकिस्तान बनता जा रहा है बांग्लादेश! 22 से 8% पर गिर गई हिंदुओं की आबादी, रिपोर्ट देख फूट पड़ेगा गुस्सा

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अंतरराष्ट्रीय
24 Dec 2025, 12:24 pm
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रिपोर्टर : Jyoti Sharma

Bangladesh Violence against Hindu: शेख हसीना का तख्तापलट करने के दौरान जो हालात बांग्लादेश में बने थे उससे भी बदतर हालात अब युनूस सरकार के दौरान बांग्लादेश में हैं। 30 साल के हिंदू युवक और फैक्ट्री वर्कर दीपू चंद्र दास को दंगाई भीड़ ने घेर कर पीट-पीट कर मार डाला औऱ उसके शव को पेड़ से लटका कर जला डाला। जिसके बाद भारत समेत दुनिया के देशों में उबाल है। पूरी दुनिया में हिंदुओं पर हो रहे इस अत्याचार पर चिंता जताई जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस बांग्लादेश में हिंदुओं के अत्याचार पर दुनिया में इतना हल्ला हो रहा है उसी बांग्लादेश में आज से नहीं बल्कि सालों से हिंदुओं का दमन हो रहा है। वो भी इस स्तर पर कि पाकिस्तान की बराबरी अब ये मुल्क कर रहा है। इसके पीछे क्या सियासत है, क्या राजनीति है, इस पर शायद ही कभी भारत में या दुनिया के दूसरे देशों में बात हुई होगी। हम यहां अब आपको बांग्लादेश में हिंदुओं के हालातों को आंकड़ों में बता रहे हैं, जो ये चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि बांग्लादेश सालों से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार में पाकिस्तान के नक्शे कदम पर ही चला है।


क्या कहते हैं बांग्लादेश के जनसंख्या के आंकड़े?


बात करेंगे उस वक्त की जब बांग्लादेश बना। साल 1971 में पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा अलग होकर बांग्लादेश बना। तब वहां पर हिंदुओं का आधिकारिक आबादी करीब 22 प्रतिशत थी और पूरे बांग्लादेश की जनसंख्या 7 करोड़ थी। इस लिहाज़ से बांग्लादेश में कुल 1 से 1.5 करोड़ हिंदू थे। लेकिन 2025 तक बांग्लादेश की कुल जनसंख्या में भी काफी फर्क आया। जिसमें सामाजिक, धार्मिक और सियासी बदलाव भी बड़े कारक रहे। वर्तमान में बांग्लादेश की कुल जनसंख्या 17.5 करोड़ के आसपास है। यानी बांग्लादेश में 1.1 प्रतिशत प्रति साल की बढ़ोतरी के लिहाज से वहां पर हिंदुओं की आबादी 2.17 करोड़ होनी चाहिए थी, लेकिन ये आंकड़ा वर्तमान में आधा है यानी सिर्फ 1.30 करोड़ से 1.50 करोड़ के बीच। यानी ये आंकड़ा 1971 के आंकड़े के ईर्दगिर्द ही घूम रहा है। यानी इन 54 सालों में बांग्लादेश की आबादी 14 फीसदी कम होकर सिर्फ 8 फीसदी ही रह गई।


क्यों कम हो रही हिंदुओं की आबादी?


अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था माइनॉरिटी राइट ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक 1988 में आठवें संवैधानिक संशोधन के तहत इस्लाम को बांग्लादेश का राष्ट्रीय धर्म घोषित कर दिया गया था और 1971 के उस संविधान को रद्द कर दिया गया जिसमें बांग्लादेश को धर्मनिरपेक्ष राज्य के तौर पर स्थापित किया गया था। कई हिंदू पर्यवेक्षकों ने आठवें संवैधानिक संशोधन को बांग्लादेश में शरिया लागू करने की दिशा में उठाया गया कदम माना, ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान में हुआ था। इसके बाद 1980 और 1990 के दशक में हिंदुओं और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कट्टरपंथी आंदोलन बढ़ गए। जिसमें सबसे भयनाक घटना 1990 में हुईं। जब भारत में बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगे हुए थे। तब इसकी आग बांग्लादेश तक फैली थी। यहां पर कट्टरपंथियों ने चटगांव और ढाका में हिंदू मंदिरों में आग लगा दी थी। इन्होंने हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के बहाने के तौर पर इस्लाम का इस्तेमाल किया था। रिपोर्ट बताती है कि इन दंगों को बड़े-बड़े सियासतदानों की खुली छूट मिली हुई थी। कई रिपोर्ट्स में ये खुलासा हुआ कि इस हमले के बहाने हिंदुओं को उनकी जगह से भगाना था ताकि ये लोग उनकी जगह-जमीनों पर कब्जा कर पाएं।


बांग्लादेश की सरकारों ने भी नहीं छोड़ी कोई कमी


बांग्लादेश में हिंदुओं के अपनी जमीने छोड़ने का एक औऱ बड़ा कारण सामने आता है। वो था बांग्लादेश में लागू निहित संपत्ति अधिनियम...जिसकी जड़ें 1965 के शत्रु संपत्ति अध्यादेश में निहित हैं। दरअसल इसे भारत और पाकिस्तान के युद्ध के बाद लागू किया था। जिसमें भारतीय नागरिकों और भारत में रहने वाले लोगों की कंपनियां, जमीनें और इमारतें पाकिस्तानी सरकार के कंट्रोल और प्रबंधन में आ गईं थीं। हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद इन्हें उनके असली मालिकों को लौटाया जाना था, लेकिन 1971 में बांग्लादेश की आजादी तक युद्ध की स्थिति आधिकारिक तौर पर खत्म नहीं हुई थी और भारत तो कम से कम उस समय के लिए दुश्मन नहीं था। हालांकि, जब बांग्लादेश बना औऱ वहां नई सरकार बनी तब सरकार ने इस शत्रु अधिनियम को निरस्त करने के बजाय, निहित एवं अनिवासी संपत्ति प्रशासन अधिनियम 1974 के जरिए इसके प्रावधानों को और मजबूत कर दिया। जिसके तहत अप्रैल 2001 में, शेख हसीना की अवामी लीग ने निहित संपत्ति वापसी विधेयक पारित किया। जिसके मुताबिक निहित संपत्ति अधिनियम के तहत जब्त की गई जमीन को मूल मालिकों या उनके वारिसों को लौटाया जाना था और सरकार को 180 दिनों की निर्धारित डेडलाइन के अंदर योग्य संपत्ति की घोषणा करना भी जरूरी था। हालांकि, नवंबर 2002 में, खालिदा जिया की BNP सरकार ने निहित संपत्ति कानून में संशोधन कर दिया, जिससे सरकार को संपत्तियों को उनके सही मालिकों को लौटाने पर असीमित अधिकार मिल गया। इसका मतलब ये हुआ कि न केवल हिंदुओं से ली गई संपत्तियों को लौटाने की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई, बल्कि मौजूदा निहित संपत्ति अधिनियम के तहत और भी ज़ब्ती की गई।


सांप्रदायिक द्वेष ने किया हिंदुओं पर गंभीर अत्याचार


हिंदुओं के दमन का सिर्फ ये कारण ही नहीं बल्कि सियासी और सांप्रदायिक द्वेष भी बड़ा कारण है, जिसके चलते आज तक वहां पर हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। एक्ज़ांपल के तौर पर 28 फरवरी 2013 को बांग्लादेशी इस्लामी राजनेता और जमात-ए-इस्लामी के उपाध्यक्ष डेलवर हुसैन सईदी को हत्या, लूटपाट, आगजनी, बलात्कार और हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण सहित 16 आरोपों में दोषी ठहराया गया था और दो मामलों में तो मौत की सजा सुनाई गई। जब ये फैसला दिया गया तब उसके समर्थकों ने देश भर में हिंदुओं पर जवाबी हमले कर दिए। उन्होंने बड़ी संख्या में हिंदुओं के घरों, दुकानों, मंदिरों को आग लगाई उन्हें तोड़ा। इस हिंसा से बांग्लादेश के लगभग सभी जिलों में रहने वाले हिंदू प्रभावित हुए।


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