दुर्गा पूजा में क्यों होता है सिंदूर खेला ? 450 साल पुराना है इतिहास

दुर्गा पूजा में क्यों होता है सिंदूर खेला ? 450 साल पुराना है इतिहास

Date: Oct 09, 2024

By: Mansi Yadav, Bharatraftar

क्यों खास पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा?

पश्चिम बंगाल की नवरात्रि बेहद ही ख़ास होती है। दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली संध्या आरती इतनी भव्य होती है कि इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां होने वाली दुर्गा पूजा में एक और जो सबसे खास परंपरा है वो है सिंदूर खेला।

क्या है सिंदूर खेला?

 बंगाल में नवरात्रि में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व होता है और इसे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है| नवरात्रि का आखिरी दिन सबसे खास होता है क्योंकि इस दिन बंगाली महिलाएं सिंदूर खेला की रस्म मनाती हैं|

रस्म कब होती?

सिंदूर खेला माता की विदाई के दिन खेला जाता है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर खेला की रस्म दशहरे के दिन मनाई जाती है|

कैसे मनाते हैं सिंदूर खेला?

नवरात्रि के दसवें दिन महाआरती के साथ इस दिन का आरम्भ होता है। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को भोग लगाते हैं। इसके बाद मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। 

महिलाएं खेलती सिंदूर खेला

 महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। सिन्दूर खेला के बाद ही अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाता है।

धार्मिक महत्व

सिंदूर खेला के पीछे एक धार्मिक म​हत्व भी है| कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में मां दुर्गा के विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था| तभी से हर साल पूरी धूमधाम से इस दिन का मनाया जाता है|

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