केरल में क्यों पहनते हैं सफेद और गोल्डन साड़ी, जानें कासवु साड़ी का इतिहास
Date: Oct 04, 2024
By: Mansi Yadav, Bharatraftar
कासवु साड़ी
अक्सर आपने देखा होगा की केरल में महिलाएं सफेद और गोल्डन कलर की साड़ी पहनती हैं| इस पारंपरिक साड़ी को कासवु नाम से जाना जाता है| इस साड़ी को आज भी मलयाली समुदाय मंदिरों, शादी और अंतिम संस्कारों के मौके पर पहनता है|
केरल की परंपरा
केरल में पारंपरिक कासवु साड़ी की अपनी शान है और वह भीड़ में बिल्कुल अलग दिखती है। यह साड़ी दिखने में भले ही बिल्कुल सिम्पल हो, लेकिन इसके साथ जुड़ी है एक बेहद पुरानी सांस्कृतिक विरासत और अनोखी कला।
पुरानी शिल्प
इस साड़ी को मलयाली समुदाय मंदिरों, शादी और अंतिम संस्कारों के मौके पर पहनता है। आज, कई सालों बाद भी इस बेहद पुराने शिल्प को किसी नए डिज़ाइन की ज़रूरत नहीं है।
कासवु शब्द का मतलब
केरल की इस साड़ी के बॉर्डर में इस्तेमाल की जाने वाली ज़री है और साड़ी से नहीं। इस साड़ी बनाते हुए जिस सामग्री इस्तेमाल किया जाता है ये उसका नाम है।इस साड़ी को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का नाम कासवु है|
इतिहास
इतिहास देखा जाए तो केरल में साड़ी पहनने की परंपरा नहीं थी। इसकी जगह था मुंडू। पुरुष हों या महिलाएं, सभी कमर से नीचे मुंडू पहना करते थे और उसके ऊपर कुछ नहीं। किसी को भी शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने की ज़रूरत नहीं थी।
शॉल जैसा कपड़ा
उपनिवेशवाद के बाद, महिलाओं ने अपने ऊपरी शरीर पर एक अगवस्त्र यानी एक शॉल के समान कपड़ा पहनना शुरू कर दिया था। और इस तरह मुंडू टू-पीस सेतु मुंडू में बदल गया।
साड़ी का पल्लू
लोग कमर में एक मुंडू पहनते हैं, और दूसरे को साड़ी के पल्लू की तरह ओढ़ते हैं। सिंगल-पीस साड़ी काफी समय बाद आई। यह पहला सिला हुआ कपड़ा था जो लोगों ने पहना था।इस साड़ी को कासवु कहते हैं|
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