शिव जी की भूल को सुधारने के लिए जब ब्रह्माजी ने प्रकट किया था ब्रह्म कमल, इसे तोड़ने का भी होता है बहुत खास नियम
Brahma Kamal: ब्रह्म कमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल कश्मीर में पाया जाता है। इस फूल को ब्रह्मा जी ने इसलिए उत्पन्न किया था, क्योंकि जब भगवान शिव ने गणेश जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। तब दोबारा भगवान शिव को गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख लगाना था, इसके लिए अमृत की आवश्यकता थी।
स्पेशल रिपोर्ट- सुधीर पाल
आज आपको रुबरु कराते हैं एक ऐसे अदभुत, आलौकिक, भव्य और दिव्य पुष्प से जिसे स्वयं देवों के देव ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था। इसीलिए इसका नाम है "ब्रह्म कमल"।
क्या है ब्रह्म कमल की कहानी?
इस फूल को ब्रह्मा जी ने इसलिए उत्पन्न किया था, क्योंकि जब भगवान शिव ने गणेश जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। तब दोबारा भगवान शिव को गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख लगाना था, इसके लिए अमृत की आवश्यकता थी। इसी समय ब्रह्मा जी ने ब्रह्म कमल की उत्पन्न किया और इस ब्रह्म कमल फूल से उत्पन्न अमृत हुआ था। इसी अमृत से गणेश जी को दोबारा जीवित किया गया था, इसी कारण इसे ब्रह्म कमल भी कहा जाता है।
अलौकिक ब्रह्म कमल को आप कहां देख सकते हैं?
ब्रह्म कमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा ये नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में और उत्तराखंड में ये गंगोत्री घाटी के उच्च हिमालय क्षेत्र खासकर बुग्यालों में, पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर बहुतायत में मिलता है।
ऐसा मत समझिएगा कि इस ब्रह्म कमल को जो चाहे तोड़ कर ले आए, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं। जिनका पालन किया जाना जरुरी होता है। ये फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितंबर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।
आपको बताते चलें कि अगस्त के महीने में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थित गांवों में बड़े स्तर पर धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। इन्हीं धार्मिक मेलों में स्थानीय ग्रामीण युवा लोग उच्च हिमालय में स्थित बुग्यालों में जाकर इन ब्रह्म कमल को बड़ी मात्राए एकत्रित कर लाते हैं और अपने अपने आराध्य देवों को अर्पित करते हैं।
धार्मिक मेलों में शामिल होने वाले लोगों को भगवान के प्रसाद के रूप में इस ब्रह्म कमल को वितरित किया जाता है। उतरकाशी के सुदूरवर्ती उच्च हिमालयी छेत्र में सावन में समेस्वर देवता का मेला भंगेली गाँव में बड़े व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। जिसे हमलोग स्थानीय भाषा में "हारदुधासी मेले के रूप में मानते हैं।
मेला शुरू होने से पहले दूध दही घी और फल से समेस्वर देवता की पूजा की जाती है और उसके बाद मेला शुरू हो जाता है। सबसे पहले भगवान समेस्वर देवता को ये ब्रह्म कमल पुष्प चढाया जाता उसके बाद समेस्वर महाराज का कफूवा लगाया जाता है और फिर समेस्वर महाराज डांगूरया आसान लगाते हैं। मेले में शामिल सभी लोगों और बाहर से अथितियों को देवता के प्रशाद के रूप में ब्रह्म कमल पुष्प दिया जाता है।