बर्बरीक को क्यों कहते हैं खाटू श्याम, किसने दिया आशीर्वाद जो श्रीकृष्ण का ये नाम बना पहचान, बहुत चमत्कारी है इनका मंदिर
खाटू श्याम महाबलि भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक हैं. इन्हीं की पूजा खाटू श्याम के रूप में की जाती है. बर्बरीक बचपन से ही वीर और महान योद्धा थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे.
खाटू श्याम मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. राजस्थान में स्थित इस मंदिर से दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर के पीछे काफी रोचक कथा है.
कौन हैं बाबा खाटू श्याम
खाटू श्याम महाबलि भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक हैं. इन्हीं की पूजा खाटू श्याम के रूप में की जाती है. बर्बरीक बचपन से ही वीर और महान योद्धा थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे.
मंदिर का इतिहास
मंदिर की बहुत ही अनोखी बात प्रचलित है. कहा जाता है कि जो इस मंदिर में जाता है उसे श्याम बाबा का हर बार नया रूप देखने को मिलता है.
बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कहानी
कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती से युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की. मां ने जब अनुमति दे दी तो उन्होंने पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ माता ने विचार किया कि और कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसका सहारा बनो.’
बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया और कहा कि वह ऐसा ही करेंगे और वह युद्ध भूमि के लिए निकल पड़े. श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे इसलिए उन्होंने सोंचा कि अगर कौरवों को हारता देख बर्बरीक कौरवों ने कौरवों का साथ दिया तो पांडवों का हारना निश्चित है. इसके बाद श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया. यह सुन वो असमंजस में पड़ गए और उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की. श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए. इसके बाद बर्बरीक ने अपनी तलवार निकालकर श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर अर्पित कर दिया. श्रीकृष्ण ने उनके शीश को अपने हाथ में उठाया और अमृत से सींच कर अमर कर दिया. उन्होंने श्रीकृष्ण से पूरा युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की, इसलिए श्रीकृष्ण ने उनके शीश को युद्ध भूमि के समीप ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया और वहां से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा.
हारे का सहारा खाटू श्याम
युद्ध जब समाप्त हुआ तो सभी पांडव विजय का श्रेय लेने लगे. आखिरकार निर्णय के लिए सभी श्रीकृष्ण के पास गए उन्होंने बर्बरीक से पूछा. बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया, ‘भगवन युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और मां जगदम्बा लहू का पान कर रही थीं, मुझे तो ये लोग नजर नहीं आए. श्रीकृष्ण ने उनसे प्रसन्न होकर उनका नाम श्याम रख दिया. साथ ही अपनी कलाएं और शक्तियां देते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि, ‘बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी न तो कोई हुआ है और न ही होगा. तुम हारने वाले का सहारा बनोगे. लोग तुम्हारे दरबार में आकर जो भी मांगें उन्हें वो मिलेगा.’ इसके बाद इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया और खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया.