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राजस्थान में आज थमेगा चुनाव प्रचार, बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा दांव पर, निर्दलीयों की चल रही अलग रणनीति!...

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के लिए यह उपचुनाव एक बड़ी परीक्षा है। कुछ महीने पहले ही उन्हें राजस्थान बीजेपी की कमान सौंपी गई है।

राजस्थान में आज थमेगा चुनाव प्रचार, बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा दांव पर, निर्दलीयों की चल रही अलग रणनीति!...

राजस्थान में राजनीतिक तापमान चरम पर है! सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव ने राज्य को दो गुटों में बांट दिया है - बीजेपी और कांग्रेस। आज चुनाव प्रचार थम जाएगा, लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से जोरदार प्रचार अभियान पहले ही चुनावों को एक रोमांचक बना चुके हैं।

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एक तरफ कांग्रेस अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उन्हें अपनी छह सीटों को बचाना है, और वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि उनकी खोई हुई सीट वापस आ जाए। दूसरी ओर बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 11 सीटों की हार का बदला लेने के लिए तत्पर है। उनके लिए यह एक मौका है कि वे राजस्थान में अपनी पकड़ मजबूत करें।

मदन राठौड़ के लिए यह उपचुनाव बड़ी परीक्षा

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के लिए यह उपचुनाव एक बड़ी परीक्षा है। कुछ महीने पहले ही उन्हें राजस्थान बीजेपी की कमान सौंपी गई है, और यह उनके लिए अपनी क्षमता का प्रमाण देने का एक मौका है। यदि उनकी पार्टी उपचुनाव में कामयाब होती है, तो उनका नेतृत्व मजबूत होगा। लेकिन यदि पार्टी हार जाती है, तो उनके लिए यह एक बड़ा झटका होगा।

चुनाव प्रचार में दोनों पक्षों ने अपने अपने प्रचार का जमकर इस्तेमाल किया है। बड़े रैलियों से लेकर घर-घर प्रचार तक, दोनों पक्षों ने जनता को अपनी तरफ खींचने के लिए हर संभव प्रयास किया है। अब तो बस 13 नवंबर का इंतजार है, जब जनता अपना फैसला सुनाएगी। कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात निश्चित है कि इस उपचुनाव का राजस्थान की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

इस बार कांग्रेस अपने दम पर लड़ रही उपचुनाव 

सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इस बार चुनाव में निर्दलीय, बागी और क्षेत्रीय दल के उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी के दावेदारों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।

दिलचस्प बात ये थी कि लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 25 सीटों पर गठबंधन करके चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस इस बार अकेले दम पर उपचुनाव के मैदान में उतरी थी।

बीजेपी ने भी सभी सातों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इसके अलावा बीएपी ने दो और आरएलपी ने एक सीट पर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया था।

सियासी पंडित इस अजीबोगरीब स्थिति को लेकर हैरान थे। कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के पीछे क्या रणनीति थी? क्या ये बीजेपी को कमजोर करने की कोशिश थी या कुछ और?

हर कोई इस सवाल का जवाब जानने के लिए बेताब था। चुनावों के नतीजे ही बता सकते थे कि कांग्रेस का ये अकेलापन उसे जीत दिलाएगा या हार का स्वाद चखाएगा!

झुंझुनूं में राजेंद्र गुढ़ा ने बढ़ाई मुश्किल

झुंझुनूं की धरती पर चुनावी सरगर्मी चरम पर थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र ओला ने जीत दर्ज की थी, पर लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद वे सांसद बन गए। अब उपचुनाव की घोषणा के साथ ही झुंझुनूं की जनता फिर से अपने नेता चुनने के लिए तैयार थी।

कांग्रेस ने इस बार बृजेंद्र ओला के भाई अमत ओला को टिकट दिया, यह सीट ओला परिवार की गढ़ मानी जाती थी। बीजेपी ने राजेंद्र भांबू को मैदान में उतारा, उम्मीद थी कि वो कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा पाएंगे।

पर सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने निर्दलीय ताल ठोंकी। गुढ़ा कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के भी खास माने जाते थे, इसी वजह से उनके मैदान में उतरने से दोनों दलों का गणित बिगड़ सकता था।

जैसे ही गुढ़ा ने प्रचार शुरू किया, झुंझुनूं में तूफ़ान मच गया। उनकी लोकप्रियता और ज़मीनी जुड़ाव ने दोनों बड़े दलों को डर से कंपा दिया। जनता उनके भाषणों से मुग्ध थी, वो उनसे जुड़ने लगे।

गुढ़ा अपने भाषणों में कांग्रेस की विफलताओं और बीजेपी के दोगलेपन को बेनकाब कर रहे थे। उनके तीखे प्रहार दोनों दलों के नेताओं को झकझोर रहे थे।

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि झुंझुनूं में कौन जीतेगा? क्या गुढ़ा कांग्रेस और बीजेपी दोनों के गणित को बिगाड़ पाएंगे? क्या वो जनता का दिल जीत पाएंगे?

झुंझुनूं की जनता ने इस बार अपनी आवाज बुलंद करने का फैसला किया है। उनकी आवाज सुनने के लिए पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है।