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क्या बंद हो जायेगी अग्निवीर योजना! मोदी सरकार का क्या है प्लान ?

अग्निवीर योजना का मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ता नजर आ रहा है।लगातार विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सवाल उठाता रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी ये मुद्दा काफी जोरों पर रहा। वहीं अब अग्निवीर की चिंगारी और तेज होती दिख रही है।

क्या बंद हो जायेगी अग्निवीर योजना! मोदी सरकार का क्या है प्लान ?

क्या अग्निवीर योजना को लेकर मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है। क्या इस योजना को बंद कर दिया जायेगा या फिर की बदलाव होगा। ऐसे कई सवाल इस वक्त देश में उठ रहे हैं। क्योंकि एक तरफ विपक्षी नेता लगातार अग्निवीर के मुद्दे को उठा रहें हैं। तो दूसरी और मोदी सरकार भी इस योजना को लेकर काफी एक्टिव नजर आ रही है।

पीएम मोदी ने मंत्रालय को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी

मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में 10 प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों को अग्निवीर योजना की समीक्षा करने और इस स्‍कीम को अधिक कारगर तरीके सुझाने का काम सौंपा है। केंद्र सरकार जल्‍द से जल्‍द इसकी हर कमी को दूर करना चाहती है। दूसरी ओर भारतीय सेना ने भी एक इंटरनल सर्वे किया है जिसमें अग्निपथ योजना में कुछ बदलाव करने की सिफारिश की है।

अग्निवीर को लेकर राहुल गांधी का हमला

 अग्निवीर योजना को लेकर तमाम विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाये और मोदी सरकार को भी जमकर घेरा। ये मुद्दा लगातार गर्माता रहा। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस योजना को लेकर कहा है की यह सेना नहीं, मोदी सरकार की योजना है। सेना यह योजना नहीं चाहती है। इस योजना के बाद शहीद दो तरह के होंगे। एक सामान्‍य जवान -जिसे पेंशन और शहीद का दर्जा समेत सभी सुविधाएं मिलेंगी। दूसरी ओर एक गरीब परिवार ने अग्निवीर दिया। उसे न शहीद का दर्जा मिलेगा, न पेंश और न कैंटी की सुविधा।

अखिलेश यादव ने भी उठाये सवाल

इस योजना को लेकर सपा नेता अखिलेश यादव ने भी मोदी सरकार पर तीखा प्रहार किया। अखिलेश यादव ने कहा की अग्निवीर योजना को युवा कभी स्वीकार नहीं कर सकते। यह योजना किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है। देश की सुरक्षा के लिए आप सिर्फ चार साल की नौकरी देंगे और उसमें भी कोई सुविधा नहीं मिलेगी। न ही देश के लिए मर-मिटने वाले सैनिक को सम्मान मिलेगा। ऐसे में चार सालों के लिए कोई भी युवा इस नौकरी को नहीं करेगा।

लोकसभा चुनाव में गर्म रहा अग्निवीर का मुद्दा

अग्निवीरों को चार साल के लिए भर्ती किया जा रहा है और इनमें से अधिकतम 25 फीसदी को परमानेंट होने का विकल्प दिया जाएगा। यह सेना के ‘नाम-नमक-निशान’ के लिए जान देने वाले खाके पर फिट नहीं बैठता। मनोविज्ञान को जरा भी समझने वाले बता सकते हैं कि जब युवाओं को लगेगा कि ज्यादा संभावना इस बात की है कि चार साल बाद उन्हें घर जाना है तो वे रिस्क नहीं लेना चाहेंगे, वह भी तब जब शहीद होने के बाद भी उनके परिजनों के लिए कोई पेंशन व्यवस्था नहीं है। सेना सामान्य नौकरी नहीं है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन सैनिक और देश के बीच एक कमिटमेंट होता है कि सैनिक देश की रक्षा करेगा, चाहे जान तक देनी पड़े और देश सैनिक के परिजनों की जिम्मेदारी संभालेगा। लेकिन अग्निवीर के साथ देश यह कमिटमेंट नहीं कर रहा है। तो क्या कमिटमेंट एकतरफा ही निभाया जाएगा? इस तरह के बहुत से सवाल हैं जो लगातार उठ रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी अग्निवीर एक बड़ा मुद्दा रहा, खासकर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। मसला गरम है और जल्द ही इसकी गरमाहट का असर भी दिख सकता है।