गजल सम्राट का सुहाना सफर... जगमोहन से जगजीत बनने की एक सुरुली कहानी...
जगजीत सिंह ने अपनी सुरीली आवाज से सबके दिलों पर राज किया है। लेकिन उनकी जिंदगी पर त्रासदियों का राज रहा। आइये पढ़ते हैं गजल सम्राट का सुहाना सफर
जगजीत सिंह ने अपनी सुरीली आवाज से सबके दिलों पर राज किया है। लेकिन उनकी जिंदगी पर त्रासदियों का राज रहा। आइये पढ़ते हैं गजल सम्राट का सुहाना सफर
जगमोहन से जगजीत बनने की कहानी
जगजीत सिंह का जन्म 'जगमोहन' के रूप में राजस्थान के श्रीगंगानगर में एक धार्मिक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता चाहते थे कि वह एक आईएएस अधिकारी बनें। लेकिन जब उन्होंने अपने बेटे में संगीत की चमक देखी। तो उन्होंने यह सोचकर उसके लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था की कि उनका बेटा बड़ा होकर गुरुद्वारे में प्रार्थना करेगा। उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनका बेटा जिसका नाम बदलकर जगजीत रखा गया था। संगीत की दुनिया का सबसे मधुर गायक बनना तय था।
फिल्मों में पहली एंट्री
जगजीत सिंह को सबसे पहले एक गुजराती फिल्म में गाने का ऑफर मिला था। "धरती ना छोरू" फिल्म सुरेश अमीन द्वारा बनाई गई थी। जिन्हें जगजीत सिंह "झोली वाले बाबा" के नाम से प्रसिद्ध करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे जहां भी जाते थे। कंधे पर लाल बैग लेकर जाते थे। सुरेश अमीन बड़ौदा-गुजरात से थे और स्कैड कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े थे। जब 1998 में सुरेश अमीन की मृत्यु हो गई। तब स्कैड कंसल्टेंट्स ने दिसंबर 1998 में जगजीत सिंह द्वारा एक लाइव कॉन्सर्ट का आयोजन किया। जिसमें जगजीत सिंह ने सुरेश अमीन को विशेष श्रद्धांजलि दी और स्कैड कंसल्टेंट्स को समर्पित किया। सुरेश अमीन ने ग़ज़ल "चिठ्ठी ना" गाकर संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।
गजल सम्राट जगजीत सिंह की गजल 'होठों से छू लो तुम', 'कागज की कश्ती' और 'मेरी जिंदगी किसी और की मेरे नाम का कोई और है' जैसे उनके गाने सदाबहार हैं। 150 से ज्यादा एलबम में अपनी जादुई आवाज का जादू बिखेरने वाले जगजीत सिंह भले ही अब दुनिया में नहीं हैं। मगर उनकी मौजूदगी हमारे जेहन में आज भी बरकरार है और हमेशा रहेगी।