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हाजीपुर में प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती, चिराग और शिवचंद्र के बीच होगा मुकाबला

लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले चिराग पासवान ने ऐलान कर दिया था कि इस बार वे हाजीपुर से ही चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए उन्हें विरोधियों से पहले अपने परिवार से ही मुकाबला करना पड़ा. चाचा पशुपति पारस से पिता की विरासत की जंग जीतने के बाद अब चिराग पासवान हाजीपुर से मैदान में हैं.

हाजीपुर में प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती, चिराग और शिवचंद्र के बीच होगा मुकाबला

लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले चिराग पासवान ने ऐलान कर दिया था कि इस बार वे हाजीपुर से ही चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए उन्हें विरोधियों से पहले अपने परिवार से ही मुकाबला करना पड़ा. चाचा पशुपति पारस से पिता की विरासत की जंग जीतने के बाद अब चिराग पासवान हाजीपुर से मैदान में हैं.

1977 से पहले हाजीपुर सीट की चर्चा तक नहीं होती थी, मगर इसी साल कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार पासवान ने अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के बालेश्वर राम को सवा चार लाख वोट से हराया था. यह जीत गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई और चर्चा का विषय बन गई. फिर 1989 में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए पासवान ने पांच लाख वोटों से जीत दर्ज की.

इस बार मुकाबला पासवान के बेटे और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान और राजद के शिवचंद्र राम में है. पिछली बार उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस जीते थे. वे यहां से लड़ना चाहते थे, इस पर काफी विवाद भी हुआ. पशुपति ने एनडीए छोड़ा, फिर मान भी गए. चिराग ने एनडीए से लोजपा के लिए इस सीट को खासतौर पर मांगा. उन्हें बिहार में पांच सीटें मिलीं. चिराग ने साफ कर दिया था कि वे पिता की सीट से ही लड़ना चाहते हैं. चिराग को जातिगत वोट, पीएम मोदी का नाम, भाजपा और जदयू के कैडर वोटों का आसरा है. वहीं, राजद के शिवचंद्र को सामाजिक समीकरणों का सहारा है. वे हाजीपुर से कई बार लड़ चुके हैं,वो स्थानीय हैं. दो बार राजद से विधायक और मंत्री रहे हैं.

हाजीपुर सीट का जातीय समीकरण

कुल वोटर- 19.53 लाख 
पासवान मतदाता- 3 लाख
राजपूत मतदाता- 3 लाख
दो लाख वोटर मुस्लिम 
ढाई लाख वोटर महादलित 

हाजीपुर लोकसभा सीट में कुल छह विधानसभा सीटे हैं. यहां करीब 19.53 लाख वोटर हैं. पासवान और राजपूत मतदाता तीन-तीन लाख हैं. वहीं, दो लाख वोटर मुस्लिम और ढाई लाख महादलित हैं.

पासवान की लंबी पारी

अन्य सीटों की तरह हाजीपुर भी कभी कांग्रेस और समाजवादियों का गढ़ था. यहां से 1957 और 62 में कांग्रेस के राजेश्वर पटेल जीते. 67 में कांग्रेस के वाल्मीकि चौधरी, 71 में दिग्विजय सिंह जीते. इसके बाद माहौल बदला और 77 और 80 में पासवान जनता पार्टी के टिकट पर जीते. 84 में कांग्रेस लहर में रामरतन जीते, तो 89 के चुनाव में पासवान फिर जीते. 91 में जनता दल से राम सुंदर दास जीते. इसके बाद लगातार चार बार 96,98, 99 और 2004 में अलग-अलग दलों से पासवान जीते. 2009 में जद-यू के राम सुंदर दास जीते तो 2014 में पासवान लोजपा से जीते. 2019 में उनके भाई पशुपति यहां से जीते.
लालू प्रसाद यादव इस चुनाव में हर जगह जातियों की गोलबंदी का अपना कार्ड चल रहे हैं. यही कारण है कि यहां उन्होंने अपने पुराने खिलाड़ी शिवचंद्र राम पर ही दांव खेला है. ये वही शिवचंद्र राम हैं जो पहले रामविलास पासवान के खिलाफ चुनाव लड़े, पशुपति पारस के खिलाफ भी चुनाव लड़े और अब चिराग पासवान के खिलाफ भी मैदान में हैं.

शिवचंद्र राम बिगाड़ रहे हैं चिराग का समीकरण

लालू यादव यहां अपने कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम के अलावा शिवचंद्र राम के बहाने दलित वोट बैंक में भी एक बड़ी सेंधमारी का प्रयास कर रहे हैं. ये दलित ही चिराग पासवान की ताकत भी हैं. पासवान वोट भले चिराग के साथ मजबूती से खड़ा है, लेकिन दलित में पासवान के अलावा अन्य जातियों में शिवचंद्र राम के कारण बिखराव हो रहा है. ऐसे में देखना होगा की इस बार का मुकाबला हाजीपुर में  कितना दिलचस्प रहने वाला है क्या चिराग पासवान अपनी विरासत और प्रतिष्ठा को बचाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं.