जैसलमेर के ढाई साके, कब हुआ पहला साका
इतिहास में जब भी साका या जौहर की बात होती है हमेशा से गौरव के साथ होती है. साका भी एक तरह का जौहर ही होता है. किसी हमले की आशंका को देखते हुए रानियां और राज परिवार की औरतें जलती हुई चिता में खुद को आहुत कर देती थीं और शत्रु से अपने सम्मान की रक्षा करती थीं.
इतिहास में जब भी साका या जौहर की बात होती है हमेशा से गौरव के साथ होती है. साका भी एक तरह का जौहर ही होता है. किसी हमले की आशंका को देखते हुए रानियां और राज परिवार की औरतें जलती हुई चिता में खुद को आहुत कर देती थीं और शत्रु से अपने सम्मान की रक्षा करती थीं. राजस्थान में कई साके और जौहर हुए हैं. जैसलमेर में ढाई साके हुए इन साकों में से जानें कि पहला साका कब हुआ.
साका के बारे में जानिए
राजस्थान की एक प्रसिद्ध प्रथा है साका जिसमें महिलाओं के जौहर की ज्वाला में कूदने के निश्चय के बाद पुरुष केसरिया वस्त्र पहन कर मरने मारने का निश्चय लेकर दुश्मन की सेना पर टूट पड़ते थे.
जैसलमेर का पहला साका
1294 ईस्वीं में जैसलमेर का पहला साका हुआ था. तब जैसलमेर पर राजा महारावल मूलराज जेतसिंह का राज था. अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने उनके राज्य पर हमला किया तो जैसलमेर के सभी पुरुष केसरिया बाना पहनकर युद्ध भूमि में आ गए गए. वहीं दूसरी ओर बाइस हज़ार राजपूत वीरांगनाओं ने आग में कूदकर जौहर किया. कहा जाता है कि यह शाका करीब 12 साल तक चला.
इतिहासकार मानते हैं कि जैसलमेर के कुल तीन साक हुए हैं है, हालांकि कुछ का मानना है कि इनकी संख्या ढाई थी. 1294 ईस्वीं में जैसलमेर का पहला साका हुआ था, जबकि दूसरा साका 1315 ईसवीं में हुआ. वहीं तीसरा साका 1550 ईस्वी में हुआ था.