Rajasthan By-Election: सलूंबर का संग्राम, 'मातृ शक्ति' का इम्तिहान, कौन जीतेगा सियासी जंग, जानें यहां
राजस्थान के सलूम्बर उपचुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। यह सीट अब नारी शक्ति के बीच मुकाबले का केंद्र बन गई है। जानिए इस सीट पर किसकी जीत होगी।
राजस्थान उपचुनाव में सियासी घमासान की शुरुआत हो चुकी है। कांग्रेस-बीजेपी ने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी है। ज्यादातर लोगों को लगता है इस बार हॉट सीट दौसा, खींसवर और चौरासी है हालांकि ऐसा नहीं है। दरअसल, हम आपको उस सीट के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कांग्रेस ने दिग्गज नेता का टिकट काटकर महिला प्रत्याशी को उतारा है, जबकि बीजेपी ने भी महिला प्रत्याशी पर दांव लगाया है। ये सीट और कोई नहीं बल्कि सलूंबर सीट है। जहां पर मुकाबला अब नारी शक्ति के बीच है। दोनों राजनीतिक दलों ने आधी आबादी साधने की कोशिश की है। कुलमिलाकर इस सीट पर मुकाबला पहले से और भी ज्यादा रोचक हो गया है।
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रोमांचक हुआ सलूंबर सीट का उपचुनाव
सलूंबर सीट से उम्मीद थी कांग्रेस पार्टी कद्दावर नेता रघुवीर मीणा को उतार सकती है लेकिन पार्टी ने बिल्कुल अलग रणनीति अपनाते हुए 2018 में बगावत कर चुनावी मैदान में उतरने वाली रेशमा मीणा को चुना है। वहीं, रघुवीर मीणा की बात करें तो वह लंबे वक्त से चुनावी मैदान में उतरते आ रहे हैं लेकिन पार्टी इस बार उनके परिवार से नहीं बल्कि किसी अन्य को टिकट देना मुनासिब समझा। इससे इतर रेशमा मीणा की बात करें तो 2018 में जब वह निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं तो कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। यहां तक उन्हें पार्टी से निष्काषित भी कर दिया गया था हालांकि पिछले साल रेशमा ने फिर से कांग्रेस मे वापसी की। इससे इतर सात में यही एक सीट थी जब बीजेपी का कब्जा था, हालांकि बीजेपी विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के बाद ये सीट खाली हो गई थी। पार्टी ने उनकी पत्नी शांति मीणा को मैदान में उतार महिला कार्ड खेला है।
सलूंबर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद
बीजेपी विधायक के निधन के बाद खाली हुई सीट पर 10 सालों से बीजेपी का कब्जा रहा है। वहीं, उदयपुर के अंतर्गत आने वाली इस आदिवासी बाहुल्य सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के अलाव राजकुमार रोत की पार्टी BAP भी ताल ठोक रही है। पिछली बार के चुनावों पर नजर डाले तों रोत की पार्टी प्रत्याशी 51 हजार वोट पाने में सफल रहे थे। जबकि सीट पर जीत का अंतर मात्र 15 हजार था। ऐसे में सलूंबर की राजनीति को पास से जानने वाले मानते हैं कि यहां पर कांग्रेस-बीजेपी दोनो बीएपी को कम आंकने की गलती नहीं कर सकती हैं पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है, बीते चुनावों के मुकाबले इस बार आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी की स्थिति मजबूत हुई है। यदि सहानुभूति लहर काम कर गई है तो चुनाव बीजेपी के पक्ष में जा सकता है लेकिन कांग्रेस और बीएपी दोनों समीकरण बिगाड़ने और बनाने का माद्दा रखते हैं। बहरहाल देखने को होगा बीजेपी विरासत बचाने में कामयाब रहती है या फिर कांग्रेस-बीएपी बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाती हैं।