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बांसवाड़ा: बचपन से ही लोगों को करते थे जागरूक, टीचर बनने का था सपना लेकिन बन गए सांसद, जानिए राजकुमार रोत की कहानी

बांसवाड़ा सीट: जो आपने सोच रखा है. अगर वो आपको ना मिले. तो निराश नहीं होना चाहिए. क्योंकि भगवान ने आप के लिए इससे बेहतर सोच कर रखा है. ये लाइन राजस्थान की बांसवाड़ा लोकसभा सीट से नव निर्वाचित सांसद राजकुमार रोत के लिए बिलकुल सही है. 32 साल के राजकुमार रोत का सपना टीचर बनने का था. जबकि जिंदगी ने उन्हें सांसद बन दिया. 

बांसवाड़ा: बचपन से ही लोगों को करते थे जागरूक, टीचर बनने का था सपना लेकिन बन गए सांसद,  जानिए राजकुमार रोत की कहानी

राज कुमार रोत एक बिलकुल साधारण परिवार से आते है. 32 साल की छोटी उम्र में उन्होंने दो बार विधायकी और एक बार सांसद का चुनाव जीत लिया है. हाल ही में उन्होंने लोकसभा चुनाव बांसवाड़ा लोकसभा सीट से दिग्गज महेंद्रजीत मालवीया को मात दी है. शिक्षक बनने का सपना देखने वाले रोत ने साल 2018 में विधानसभा चुनाव लड़े और राजस्थान में सबसे कम उम्र के विधायक बन गए. उसके बाद 2023 विधानसभा में उन्होंने दोबारा चुनाव में जीत हासिल की. फिर से विधायक बनने के केवल 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में सांसद पद के लिए अपनी ताल ठोकी और कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए दिग्गड नेता महेंद्र जीत सिंह को हरा कर. बांसवाड़ा से सांसद बन गए. 

बचपन से था टीचर बनने का सपना 

राजकुमार रोत का जन्म डूंगरपुर जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. रोत बचपन से ही टीचर बनना चाहते थे. इसके के लिए उन्होंने बीएड में एडमिशन भी ले लिया था. लेकिन जिदंगी तो उनको राजनीति में लाना चाहती थी. कॉलेज से ही रोत छात्र राजनीति में कदम रखा और एक बाद ऊंचाई की सीढ़ी चढ़ते है. जिसके बाद लगातोर दो बार विधायक बने. अब देश के सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा के सदस्य बन चुके है. 

2018 में सबसे युवा विधायक बने

राजकुमार दक्षिणी राजस्‍थान के डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र के आदिवासियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. वह सबसे पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी से 2018 में सबसे युवा विधायक के रूप में चुने गए. राजकुमार रोत ने बीटीपी पार्टी से चौरासी विधानसभा से चुनाव लड़ा था और भारी मतों से जीत हासिल की थी. इसके बाद  2023 के विधानसभा चुनाव में राजकुमार रोत ने भारत आदिवासी पार्टी से चुनाव लडते हुए करीब सत्तर हजार मतों से दूसरी बार विजय प्राप्त की.   

तकलीफों में गुजरा बचपन 

रोत का जन्म डूंगरपुर से 25 किमी दूर खाखर खुणया गांव में 26 मई 1992 में हुआ. इनके पिता का नाम शंकर लाल और माता का नाम पार्वती है. पिता का साया रोत के सर से बचपन में ही उठ गया था. इनका बचपन काफी तकलीफों में गुजरा. जिस वजह से इन्होंने लोगों दर्द को बहुत करीब से देखा है. 

कॉलेज लाइफ में बनाया छात्र संगठन

रोत के अंदर बचपन से ही लोगों की सेवा करनी इच्छा थी. वो छोटी उम्र में ही गांव वालों को जागरूक करने का काम किया करते. साथ ही अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना भी उन्होंने बचपन में सीख लिया था. रोत ने अपने बीए और बीएड की पढ़ाई डूंगरपुर कॉलेज से की. जहां राजकुमार रोत छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उनके संगठन का नाम भीलप्रदेश विद्यार्थी मोर्चा (BPVM) है. राजकुमार रोत का सपना एक शिक्षक बनने का था.    

समाज ने खुद चुना था अपना प्रत्याशी 

भारत आदिवासी पार्टी में जिस प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा जाता है पहले इसके चयन समाज की जाजम पर सामूहिक रूप से सिलेक्शन प्रणाली के माध्यम से होता है. जिसके पक्ष में अधिक वोट मिलते हैं उसको चुनावी मैदान में उतारा जाता है. इस प्रोसेस से राजकुमार रोत प्रत्याशी चुने गए और फिर लोगों के भरोसे पर खड़े उतरे हुए पहले विधायक और अब सांसद बने. राजकुमार रोत की नामांकन रैली में भी बड़ी भारी भीड़ जुटी थी. जिसकी तस्वीरें और वीडियो खूब वायरल भी हुए थे.