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अलवर में क्या है जनता का मूड, कांग्रेस बचा पाएगी अपना अस्तित्व या बीजेपी फिर करेगी जीत दर्ज

राजस्थान की अलवर लोकसभा सीट एक समय में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी.लेकिन पिछले दो चुनावों में यहां बीजेपी ने सेंधमारी कर ये सीट अपने पाले में कर ली है.दरअसल इस शहर का मिजाज ही ऐसा है कि कभी किसी पार्टी या नेता को अपने सिर नहीं चढ़ाता, बल्कि जैसे ही कोई भाव दिखाता है, यह शहर उसे गद्दी से उतार भी देता है.

अलवर में क्या है जनता का मूड, कांग्रेस बचा पाएगी अपना अस्तित्व या बीजेपी फिर करेगी जीत दर्ज

राजस्थान की अलवर लोकसभा सीट एक समय में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी.लेकिन पिछले दो चुनावों में यहां बीजेपी ने सेंधमारी कर ये सीट अपने पाले में कर ली है.दरअसल इस शहर का मिजाज ही ऐसा है कि कभी किसी पार्टी या नेता को अपने सिर नहीं चढ़ाता, बल्कि जैसे ही कोई भाव दिखाता है, यह शहर उसे गद्दी से उतार भी देता है.

राजस्थान का अलवर शहर, इसका अपना अलग ही मिजाज है. अरावली की वादियों में बसे इस शहर के नखरे ऐसे हैं कि 11 बार जीतने के बाद भी कांग्रेस इसे अपना गढ़ होने का दावा नहीं कर सकती. दरअसल इस शहर की फितरत ही नहीं है कि यह किसी पार्टी या नेता को सिर पर चढ़ाए. यहां एक सिलीसेढ़ नाम से झील है. बारिश के दिनों में इसमें चादर चलती है, जो झील में आए अतिरिक्त पानी को उठाकर बाहर फेंक देती है. ठीक इस प्रकार यहां की राजनीति में भी हर पांच साल पर चादर चलती है और हर चुनाव में जीतने वाली पार्टी या प्रत्याशी बदल जाते हैं.

अलवर सीट का इतिहास

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब 150 किमी दक्षिण और जयपुर से 150 किमी उत्तर में बसा यह शहर महाभारत काल में काफी संवृद्ध था. उस समय इसका नाम मत्स्य नगर हुआ करता था. कहा जाता है कि यहीं पर पांडवों ने अपना अज्ञातवास काटा था. तीसरी शताब्दी में यहां प्रतिहार क्षत्रियों ने राज किया. उस समय राजा बाधराज द्वारा निर्मित राजगढ़ दुर्ग के खंडहर यहां आज भी मौजूद है. छठीं शदी में यहां भाटी क्षत्रियों का राज था. फिर यहां चौहान आए, लेकिन साल 1205 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से छीन कर अलवर निकुम्भ राजपूतों को सौंप दिया. उसके बाद राजा प्रताप सिंह ने अलवर को अपनी रियासत की राजधानी बनाया. ब्रिटिश गैजेटियर की माने तो अलवर का विभाजन कई क्षेत्रों में था. अलवर बई क्षेत्र में शेखावत राजपूत राज करते थे.

मतदाताओं की संख्या कुछ इस प्रकार है

अलवर संसदीय सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 17.8 फीसदी है. इनकी संख्या लगभग 333,890 है. इसी प्रकार 5.9 फीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर हैं. इनकी संख्या करीब 110,671 हैं. वहीं 18. फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इस क्षेत्र में 76.8 फीसदी मतदाता गांवों में रहते हैं. वहीं करीब 23 फीसदी मतदाता शहरी हैं.

कौन पहनेगा जीत का ताज किसे मिलेगी हार ?

अलवर संसदीय सीट यूं तो कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी लेकिन वर्तमान में यहां बीजेपी का सांसद है पिछले चुनावों में बीजेपी ने यहां अच्छी जीत दर्ज की थी मतदाताओं की संख्या और जातियों में बंटे लोग किसको अपना नेता चुनेंगे ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस सीट पर कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है वो ये सीट वापस पाना चाहती है और कोई बड़ी बात नहीं कि अगर विकास के मुद्दों पर यहां चुनाव हो तो कांग्रेस जीत दर्ज भी कर ले लेकिन बीजेपी भी यहां हल्की नहीं है.