बरेली के गंगवार, कराएंगे 400 पार! संतोष युग के बाद क्या बचा पाएगी बीजेपी अपना गढ़?
बरेली शहर को झुमका नगरी के नाम से जाना जाता है. इसी पहचान के नाम पर चार साल पहले यहां एक चौराहे का नाम भी ‘झुमका चौराहा’ रख दिया गया है. बॉलिवुड के मशहूर गीत ‘झुमका गिरा रे…’ से यहां के झुमके को बड़ी पहचान मिली. यह अलग बात है कि इस झुमके को लेकर अब सियासत भी होती है. चौराहे का नाम जब झुमका के नाम पर रखा गया तो यह बात आई कि यहां की और भी पहचान हैं. झुमको के लिए मशूहर है उत्तरप्रदेश का बरेली शहर. ये लोकसभा सीट राजनीति के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है. पिछले करीब तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी का एक छत्र राज रहा है. यहां से सांसद संतोष गंगवार कई बार इस सीट से चुनाव जीत चुके है.
बरेली शहर को झुमका नगरी के नाम से जाना जाता है. इसी पहचान के नाम पर चार साल पहले यहां एक चौराहे का नाम भी ‘झुमका चौराहा’ रख दिया गया है. बॉलिवुड के मशहूर गीत ‘झुमका गिरा रे…’ से यहां के झुमके को बड़ी पहचान मिली. यह अलग बात है कि इस झुमके को लेकर अब सियासत भी होती है. चौराहे का नाम जब झुमका के नाम पर रखा गया तो यह बात आई कि यहां की और भी पहचान हैं. झुमको के लिए मशूहर है उत्तरप्रदेश का बरेली शहर. ये लोकसभा सीट राजनीति के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है. पिछले करीब तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी का एक छत्र राज रहा है. यहां से सांसद संतोष गंगवार कई बार इस सीट से चुनाव जीत चुके है.
बरेली लोकसभा सीट की जंग
इस बार बीजेपी ने बरेली से पूर्व मंत्री छत्रपाल गंगवार को प्रत्याशी बनाया है. इसके पीछे माना जा रहा है कि छत्रपाल संघ से जुड़े है और कुर्मी है. यही कारण है कि भाजपा ने उनके ऊपर दाव खेला है. बड़ी बात ये है कि संतोष का टिकट कटने और छत्रपाल गंगवार को टिकट मिलने के बाद भाजपा में बगावत शुरू हो गई थी. वहीं सपा ने पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन पर भरोसा जताया. ऐरन 2009 में संतोष गंगवार को हराकर संसद पहुंचे थे. अब ऐरन समाजवादी हो गए है और साइकिल पर सवार हुए तो अखिलेश यादव ने उन्हें बरेली लोकसभा से प्रत्याशी बनाया है. सपा और कांग्रेस दोनों का वोट ऐरन को मिलेगा तो छत्रपाल गंगवार के लिए ऐरन भारी पड़ सकते है.
बरेली लोकसभा सीट
बरेली भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है. पिछले 40 सालों से बरेली लोकसभा पर भाजपा का कब्जा है. भारतीय जनता पार्टी से संतोष गंगवार यहां के सांसद है. संतोष गंगवार 8 बार के सांसद है. संतोष गंगवार का जैसा नाम है वैसे ही उनकी साफ सुथरी छवि भी है. वे बहुत ही सादगी के साथ रहते है. किसी तरह का प्रोटोकॉल नहीं अपनाते और हर किसी के सुख-दुख में शामिल होते है. लेकिन इस बार संतोष युग समाप्त हो जायेगा. उनकी बढ़ती उम्र की वजह से उनका टिकट काटा गया है.
क्या है जातिगत समीकरण
अगर जातिगत समीकरण की बात कहे तो बरेली लोकसभा में कुल 19,11,464 लाख मतदाता है. वही अगर जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 35 प्रतिशत है, यानी कि मुस्लिम मतदाता 6.65 लाख है. मुस्लिम मतदाता बहुतायत होने के बावजूद उनका वोट हर बार बट जाता है यही वजह है की यहां 8 बार से संतोष गंगवार सांसद है. वही कुर्मी मतदाताओं की संख्या करीब साढ़े तीन लाख है. यही वजह है की बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती और इस कारण पार्टी ने इस बार भी कुर्मी नेता को ही प्रत्याशी बनाया है.बरेली में ब्राह्मण मतदाता भी बड़ी संख्या में है यहां करीब ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता है, वैश्य भी करीब डेढ़ लाख है.कायस्थ करीब डेढ़ लाख मतदाता है. ठाकुर एक लाख है. एससी वोटरों की संख्या 2 लाख के करीब है, लोधी 1.65 लाख बाकी अन्य बिरादरी के मतदाता है.
इस बार बरेली में त्रिकोणिय मुकाबला देखने को मिल सकता है. भाजपा का गढ़ माने जाने वाली सीट बरेली में इस बार बीजेपी ने अपने आठ बार के सांसद का टिकट काट दिया है. वहीं उनकी जगह पूर्व मंत्री छत्रपाल गंगवार को उम्मीदवार बनाया गया है. अब देखना होगा 24 के चुनाव में क्या असर देखने को मिलता है. इस सीट बदलाव होगा या बीजेपी का जलवा कायम रहेगा.