Wayanad By-Election: प्रियंका गांधी को वायनाड भेजने के पीछे की सच्चाई, कांग्रेस की चाल या जरूरत? जानें यहां
Priyanka Gandhi election strategy: प्रियंका गांधी ने वायनाड उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल कर अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया। ऐसे में जानें क्या प्रियंका गांधी का जादू वायनाड में चलेगा?
आज का दिन कांग्रेस के लिए बेहद खास है। प्रियंका गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नामांकन करते हुए राजनीतिक पारी की आगाज कर दिया है। ये सीट राहुल गांधी के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई थी। प्रियंका के नामांकन दाखिल करने के दौरान भाई राहुल गांधी, पति रॉबर्ट वाड्रा और सीनियर नेता मौजूद रहें। इससे पहले उन्होंने रोड शो भी किया था। जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ पड़ा। वैसे तो लंब वक्त से कार्यकर्ता प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने का इंतजार कर रहे थे। अब वह घड़ी आ ही गई लेकिन इसे सामान्य घटना के तौर पर लेना शायद गलत है। इससे कई एक्सपर्ट्स कांग्रेस की मजबूरी से जोड़कर देख रहे हैं तो कुछ भाई की विरासत को आगे बढ़ाने से। ऐसे में जानेंगे आखिर वायनाड से प्रियंका गांधी को चुनावी मैदान में उतारने की कवायद क्यों की गई।
Those who are in power used hatred & created separation just to stay in power. This is not the politics on which our nation was founded.
— Congress (@INCIndia) October 23, 2024
Our freedom movement, led by Mahatma Gandhi ji, was inspired by equality and respect towards every religion.
Jesus Christ teaches us about… pic.twitter.com/V3xb33yqnZ
वायनाड में चलेगा प्रियंका गांधी का जादू?
राजनीति में प्रियंका गांधी 1999 से एक्टिव हैं। उन्होंने उत्तर भारत की कमान अपने हाथों में ले रखी थी। राज्यों में रैलियों से लेकर जोरदार भाषण तक, हर जगह प्रियंका की वाहवाही होने लगी। धीरे-धीरे पार्टी में भी उनका कद बढ़ने लगा। 2019 में प्रियंका को यूपी का प्रभारी महासचिव बनाया गया हालांकि कुछ खास रिजल्ट नहीं दिखा इसके बाद वह धीरे-धीरे दक्षिण में एक्टिव हो गईं और चुनावी राज्यों में रैलियां करने लगी। ऐसे में सवाल है जिस तरह दक्षिण भारत में राहु गांधी की दिवानगी सिर चढ़कर बोलती है ठीक उसी तरह प्रियंका गांधी का भी कद बड़ हो सकता है या फिर उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
प्रियंका गांधी के सामने आने वाली चुनौतियां
1) कई अवसरों में ये कहा गया है जब कांग्रेस उत्तर भारत में हारी है दक्षिण भारत ने हमेशा उसकी लाज बचाई है। सोनिया गांधी से राहुल गांधी तक मुश्किल वक्त में दक्षिण से ही सांसद पहुंचे हैं। जिस वजह कांग्रेस यहां पर खुद को सुरक्षित महसूस करती है हालांकि इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता भले प्रियंका राजनीति में सक्रिय हो लेकिन उनका ज्यादा वक्त उत्तर भारत में बीता है। ऐसे में देखना होगा प्रियंका गांधी साउथ स्टेट साधने के लिए क्या रणनीति अपनाती हैं।
2) राहुल गांधी इस वक्त उत्तर भारत की राजनीति में सक्रिय हैं, ऐसे में दक्षिण कही हाथ न निकल जाए इसलिए प्रियंका गांधी से बड़ा चेहरा शायद ही पार्टी के पास हो। यहां पर केवल कांग्रेस का मुबाकला बीजेपी से नहीं बल्कि स्थानीय पार्टियों से भी होगा। केरल इसका सबसे उदाहरण है। यहां पर न तो बीजेपी सरकार न कांग्रेस की। बल्कि सत्ता में लेफ्ट का कब्जा है। ऐसे में प्रियंका के कंधों पर लेफ्ट के विजयी रथ को रोकने की जिम्मेदारी होगी।
3) केरल में लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में थे। यहां से 20 में से 18 सीटों पर कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया है। यहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में प्रियंका केवल वायनाड नहीं बल्कि पूरे केरल को साधना चाहेंगी ताकि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। अगर वह आम जनता के बीच अपनी पैंठ बना लेती हैं तो इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि पार्टी उनके चेहरे पर चुनाव लड़े।
कांग्रेस ने प्रियंका गांधी पर क्यों लगाया दांव
चुनौतियां तो एक तरफ हैं लेकिन प्रियंका गांधी के पास कई अवसर भी हैं। खास बात ये हैं कि कांग्रेस ने बहुयामी दूरदर्शिता दिखाते हुए प्रियंका को दक्षिण भारत की कमान सौंपी है। जानकार कहते हैं कांग्रेस उत्तर-दक्षिण भारत को बड़े चेहरों के साथ एक साथ साधना चाहती हैं। राहुल उत्तर भारत की राजनीति करेंगे तो प्रियंका दक्षिण की है। कहा जाता है दोनों भाई-बहन के रिश्ते चाहे जितने मजबूत हो लेकिन दोनों के कार्यकर्ताओं में ठनी रहती है। ये भी वजह है कि अब कार्यकर्ताओं को अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं ताकि आपसी तनातनी से निपटा जा सके। वायनाड में कांग्रेस आत्मविश्वास से भरपूर है कि यहां से प्रियंका को जीत मिलेी। दक्षिण भारत में राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के पास मुखर आवाज का कोई वक्त नहीं है लेकिन अब प्रियंका के सक्रिय हो जाने के बाद ये चुनौती भी लगभग खत्म हो गई है।