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मुगलों की देन था रानी कर्णावती का जौहर, हुमायूं पहुंचा तो मिली केवल राख

इतिहास हमेशा से भारतीय वीरों और वीरांगनाओं की गौरवगाथाओं से लबरेज है. ऐसे भी कई पन्ने हैं जब भारतीय वीरांगनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा करने के लिए जौहर का रास्ता चुना. इतिहास का सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मिनी का जौहर था.

मुगलों की देन था रानी कर्णावती का जौहर, हुमायूं पहुंचा तो मिली केवल राख

इतिहास हमेशा से भारतीय वीरों और वीरांगनाओं की गौरवगाथाओं से लबरेज है. ऐसे भी कई पन्ने हैं जब भारतीय वीरांगनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा करने के लिए जौहर का रास्ता चुना. इतिहास का सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मिनी का जौहर था. इसके बाद नाम आता है रानी कर्णावती के जौहर का.

कर्णावती के साथ तेरह हजार नारियों का जौहर महारानी कर्णावती के जौहर की गाथा को हमेशा याद रखा गया. महारानी कर्णावती और उनके साथ 13,000 नारियों ने जौहर किया था. इस जौहर गाथा के साथ राखी के त्यौहार की मान्यता का भी उदाहरण दिया जाता है.

बहादुरशाह की मेवाड़ पर थी नजर

सन् 1530 के करीब का समय था, आम्बेर के युद्ध में राणा रतन सिंह को वीरगति मिली थी. उनके बाद उनका भाई विक्रमादित्य मेवाड़ की गद्दी पर बैठा था. वहीं दूसरी ओर गुजरात के शासक बहादुरशाह की मेवाड़ पर तिरछी नजर थी और मौका देखकर उसने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी. इससे पहले भी उसने कई बार मेवाड़ पर हमले की कोशिश की थी. लेकिन हर बार उसे हार ही मिली. सत्ता बदल चुकी थी इसी वजह से इस बार वह दोगुने सैनिक और उत्साह के साथ आया. वहीं दूसरी ओर  आम्बेर युद्ध की वजह से मेवाड़ की सैन्य शक्ति कमजोर हो चुकी थी.

हुमायूं को रानी कर्णावती ने भेजी राखी

भीषण युद्ध चल रहा था. युद्ध के बीच राजा विक्रमादित्य की मां महारानी कर्णावती ने दिल्ली के बादशाह हुमांयू को रक्षा के वचन के लिए राखी भेजते हुए सहायता मांगी. हुमायूं राखी के महत्व को जानता था क्योंकि हुमांयू कई राजपूत राजाओं के यहां शरणार्थी बनकर रह चुका था. कर्णावती की राखी मिलते ही हुमायूं मेवाड़ की सहायता के निकल पड़ा. वहीं दूसरी ओर मेवाड़ में गुजरात की गोलाबारी से किले की दीवारें गिरने लगीं.

किले के सरदारों ने किया शाका

मेवाड़ में 8 मार्च 1535 को किले के सभी सरदारों ने सिर में चिता की धूल डालकर शाका किया और अंतिम युद्ध लड़ने के लिए किले के द्वार को खोल दिया गया. महारानी कर्णावती भी 13,000 रानियों के साथ जौहर की तैयारियां करने लगीं और राजा विक्रमादित्य की वीरगति का समाचार पाते ही सभी ने जौहर कर लिया.

हुमांयू पहुंचा तो मिली केवल राख

जब हुमांयूं  मेवाड़ पहुंचा तो उसे सब कुछ राख ही राख नजर आया. इसके बाद हुमायूं ने मेवाड़ का बदला लिया और उसने बहादुरशाह की सेना को खदेड़ा था.

हुमायूं को लेकर विद्वानों में मतभेद

कई इतिहास के जानकारों का ऐसा मानना है कि हुमायूं दिल्ली से निकला तो था, लेकिन उसकी खुद भी मेवाड़ पर नजर थी. कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि बहादुरशाह के कहने पर वह सारंगपुर में ही रुक गया था. इसके साथ ही इतिहास से जुड़ी कई कथाओं में कर्णावती को भी कर्मवती और कर्मावती बताया गया है. कहानियों में भले ही कुछ भी हो, लेकिन पद्मावती और कर्णावती के जौहर की कहानी को हमेशा गौरव के साथ याद किया जाता है.