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Rajasthan By Election: मौका या मजबूरी! पत्नी को टिकट देकर सियासी चाल खेल रहे 'हनुमान' ? क्या है प्लान जानें यहां

 राजस्थान उपचुनाव में खींवसर सीट सबसे हॉट सीट है। हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारकर सहानुभूति कार्ड खेलने की कोशिश की जा रही है। क्या बीजेपी और कांग्रेस हनुमान बेनीवाल के गढ़ में उन्हें मात दे पाएंगे?

Rajasthan By Election: मौका या मजबूरी! पत्नी को टिकट देकर सियासी चाल खेल रहे 'हनुमान' ? क्या है प्लान जानें यहां

खींवसर सीट राजस्थान उपचुनाव की सबसे हॉट सीट है। यहां पर कांग्रेस बीजेपी के प्रत्याशियों के ऐलान के बाद हनुमान बेनीवाल ने भी अपने पत्ते खोल दिये हैं। यहां से बेनीवाल ने सहानुभूति कार्ड खेलते हुए पत्नी कनिका बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है। आंकड़ो पर नजर डाले तो अभी तक हुए ज्यादातर चुनावों में बीजेपी-कांग्रेस को धूल चटाने का काम आरएलपी ने किया है। यहां पर हमेशा बीजेपी ने दमदार प्रत्याशी उतारे हालांकि जीत कभी नहीं पाई। इस सीट पर हनुमान बेनीवाल का दबदबा है,2008 से लेकर अभी तक लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव में वह कभी नहीं हारे। इसलिए उन्होंने कोई भी रिस्क न लेते हुए पत्नी को मैदान में उतारा है। 

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आखिर कौन है कनिका बेनीवाल?

2019 में सांसद बनने पर हनुमान बेनीवाल ने भाई को टिकट दिया था, इस बार उन्होंने पत्नी कनिका बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है। बता दें, कनिका बेनीवाल श्रीगंगानगर की रहने वाली हैं। वह ग्रहणी हैं हालांकि सोशल मीडिया पर वह एक्टिव रहती हैं। उन्होंने कभी राजनीतिक मसलों पर बयानबाजी नहीं की है। वह स्थानीय महिलाओं से लेकर सामाजिक कार्यों में भी हिससा लेती हैं। हनुमान बेनीवाल ने 2009 में कनिका से शादी की थी। हनुमान बेनवाल एक बेटी और बेटे के पिता हैं। 

कनिका बेनीवाल को क्यों बनाया प्रत्याशी ?

बता दें, इस बार खींवसर की सीट जीतना हनुमान बेनीवाल के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं है, इस बार उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। बीजेपी ने रेवंतराम डांगा को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने बीजेपी नेता की पत्नी रतन चौधरी को टिकट दिया है। कांग्रेस-बीजेपी ने खास रणनीति के तहत बेनीवाल को घेरने की कोशिश की है। गौरतलब है बीते विधानसभा चुनाव में आरएलपी का गला तब सूख गया था जब बीजेपी प्रत्याशी ने हनुमान बेनीवाल को तगड़ी फाइट दी थी। बेनीवाल मात्र दो हजार वोटों से जीते थे। ऐसे में बीजेपी को कम आंकने की गलती आरएलपी नहीं कर सकती है। पहले कांग्रेस का समर्थन में था हालांकि डोटासरा और बेनीवाल के आमने-सामने होने से दोनों पार्टियों ने अलग राह पकड़ ली है। इस बार खींवसर में बेनीवाल को बीजेपी के अलावा कांग्रेस की चुनौती से भी निपटना पड़ेगा। ऐसे में पत्नी को मैदान में उतार उन्होंने सहानुभूति कार्ड खेला है। 

बीजेपी को मिल सकता है फायदा ?

बेनीवाल और कांग्रेस का गठबंधन न होने से बीजेपी को फायदा हो सकता है। कई राजनीतिकार मानते हैं कांग्रसे-आरएलपी के गठबंधन न होने के पीछे डोटासरा बड़ा चेहरा है। दरअसल, गोविंद सिंह डोटासरा और हनुमान बेनीवाल में पुरानी राजनीतिक अदावत है,यही वजह है इस बार कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने अकेले चुनाव में उतरने की सलाह दी। ताकि बेनीवाल को उन्हीं के गढ़ में घेरा जा सके। दूसरी ओर बीजेपी रेवतराम डांगा के नाम के साथ कॉन्फिडेंस में है। अगर कांग्रेस-आरएलपी सामने-सामनने आते हैं तो इसका फायदा बीजेपी को मिल  सकता है। कुल मिलाकर,खींवसर पर चुनाव बीजेपी के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है, जहां से उन्हें पार पान होगा। इस बार ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस-बीजेपी हनुमान बेनीवाल की गढ़ पर उन्हें मात दे पाती है या नहीं।