Rajasthan News: थप्पड़ से शुरू हुई आग, प्रशासन की चूक ने बढ़ाई तबाही ! यहां पढ़ें हिंसा की पूरी कहानी
राजस्थान के देवली-उनियारा उपचुनाव में समरावता गांव की हिंसा ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया। नरेश मीणा की गिरफ्तारी, प्रशासन की भूमिका और अनसुलझे सवालों ने राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। क्या प्रशासन की लापरवाही इस हिंसा के लिए ज़िम्मेदार है?
राजस्थान में उपचुनाव की गूंज के साथ हर सीट पर मुकाबला दिलचस्प था, किसी ने नहीं सोचा था कि देवली उनियारा सीट पर ऐसा बवाल होगा जिसका जिक्र पूरा प्रदेश करेगा। कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा के एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मारने की घटना उपद्रव में तब्दील हो गई। 800 वोटों वाले समरावता गांव में 13 नवंबर की तरीख काले दिन से कम नहीं था। ग्रामीण जान बचाने के लिए भाग रहे थे, उपद्रवियों ने 100 से ज्यादा गाड़ियों को आगे के हवाले कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए। फजीहत होने के बाद प्रशासन जागा और नरेश मीणा को गिरफ्तार किया लेकिन ये विवाद क्यों हुआ और इसके पीछे की पूरी कहानी हम आपको बताएंगे।
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समारवता गांव में हिंसा की कहानी
800 वोटों वाले इस गांव ने कभी सोचा नहीं होगा कि मतदान का बहिष्कार करना उन्हे जिंदगीभर का दर्द दे जायेगा। दो तहसीलों के पेंच में फंसे इस गांव की क्या गलती थी। ग्रामीण अधिकारियों नेताओं के सामने रो रहे हैं। उनकी पीड़ा शायद ही कोई समझ पाये। समरावता गांव का वो पोलिंग पूथ जहां हुए थप्पड़ कांड ने गांव के इतिहास में काला पन्ना जोड़ दिया। एक छोटे से गांव से उठी थप्पड़ की गूंज ने टूटते तंत्र की सच्चाई सबके के सामने लाकर रख दी।
मतदान बहिष्कार से उपद्रव तक की घटना
समरावता गांव को शायद ही कोई जानता हो, लेकिन गांव वालों की मांग और एक साल पुराने विवाद ने गांव को चर्चा में ला दिया। ग्रामीणों की मांग भले बड़ी न हो लेकिन उसका अंत खतरनाक तरीके से हुआ। समरावता के लोग गांव को नजदीकी तहसील में जोड़ने की मांग कर रहे हैं। 2023 के विधानसभा चुनावों में भी ये मुद्दा जोरों-शोरों से उछाला गया था। इसी मांग को लेकर एक बार फिर ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया लेकिन इस बार इसका अंत कुछ अलग ढंग से हुआ। मतदान के दिन ग्रामीण शांति से प्रदर्शन कर रहे थे, इसी बीच उपचुनावों में चर्चा में रहने वाले नरेश मीणा वहां पहुंचे और जनता के हक के लिए प्रदर्शन में शामिल हो गये। उस वक्त कोई नहीं जानता था, ये संघर्ष बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में तब्दील हो जायेगा। ग्रामीणों ने एक भी वोट नहीं डाला,जैसे भनक प्रशासन को लगी गांव वालों से मतदान करने की अपील की गई। मालपुरा के एसडीएम को आदेश दिया गया कि किसी भी हालत में वोटिग प्रक्रिया प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
इस दौरान एसडीएम ने तीन लोगों से मतदान करवाया। जैसे ही इसकी भनक नरेश मीणा को लगी बात बिगड़ गई। पहले तो निर्दलीय प्रत्याशी और पुलिस की नोकझोंक होती रही। इसके बाद उन्होंने तेश में आकर एसडीएम को थप्पड़ जड़ दिया। मामला गरमाता गया। प्रशासन ने कहा वह अपना काम कर रहे थे तो नरेश मीणा ने अधिकारियों द्वारा जनता पर दबाव बनाने का आरोप लगाया। तबतक थप्पड़ कांड की गूंज पूरे प्रदेश तक पहुंच चुकी थी। दूसरी तरफ आरएएस एसोसिएशन ने नरेश मीणा की गिरफ्तारी की मांग करते हुए अल्टीमेटम जारी किया। दबाव बढ़ा तो शाम को पुलिस नरेश मीणा को गिरफ्तार करने पहुंची। हालातों को देखते हुए नरेश मीणा ने समर्थकों से समारवता आने की अपील की। प्रशासन की कार्रवाई यहां विफल हुई। जिसक बाद ग्रामीणों-समर्थकों और पुलिस के बीच संघर्ष शुरू हो गया। पुलिस की गाड़ियों समेत कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। आगजनी की खबरों से खलबली मच गई। ये घटना राजधानी जयपुर तक पहुंची। अगले दिन नरेश मीणा ने जनता के सामने अपनी बात रखी और पुलिस ने तैयारी के साथ निर्दलीय नेता को गिरफ्तार कर लिया।
नरेश मीणा की गिरफ्तारी से उनके समर्थक उग्र हो गये और सड़कों पर उतर गए। कई जगह हाइवे जाम कर दिये गये और पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम दिया गया। पुलिस ने शांति-व्यवस्था बनाए के लिए बल का प्रयोग कर कई लोगों को हिरासत में लिया। इस घटना ने समरावता गांव के लोगों को पीड़ा दी तो कई लोगों को राजनीति का मुद्दा। कई लोगों के वाहन खाक गये तो कई लोगों के अपने घायल हो गये। जिसकी भरपाई कभी नहीं जा सकती। लेकिन एक सवाल भी खड़ा होता है क्या समारवता गांव के लोगों की मांग इतनी बड़ी थी जिसपर विचार नहीं किया जा सका। अगर प्रशासन पहले जरूरी कदम उठा लेता तो शायद ये घटना न होती। प्रशासन की कार्रवाई क्या सही थी, नरेश मीणा को समय रहते अरेस्ट क्यो नहीं किया गया। ऐसे कई सवाल हैं जो इस कहानी के पीछ छूट गये हैं और हर कोई इनका जवाब जानना चाहता है।