खिलजी की वजह से हुआ इतिहास का सबसे बड़ा जौहर, रानी पद्मिनी की पवित्रता का साक्षी चित्तौड़ का जौहर
भारत का इतिहास हमेशा से गौरवान्वित रहा है. यहां राजा और रानियों के न केवल शाही किस्से हैं, बल्कि उनकी वीरता की कहानियां भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में रही हैं. इतिहास के इन्हीं पन्नों की धरोहर हैं जौहर.
भारत का इतिहास हमेशा से गौरवान्वित रहा है. यहां राजा और रानियों के न केवल शाही किस्से हैं, बल्कि उनकी वीरता की कहानियां भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में रही हैं. इतिहास के इन्हीं पन्नों की धरोहर हैं जौहर. भारत के इतिहास में ऐसे कई अवसर आए हैं जब भारत की वीरांगनाओं को अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए जौहर के रास्ते को चुनना पड़ा. इतिहास साक्षी रहा है ऐसी कहानियों का जिसमें इन कहानियों का उल्लेख है कि किस तरह से हजारों की संख्या में वीरांगनाओं ने ‘जय हर-जय हर’ कहते हुए सामूहिक अग्नि प्रवेश किया. वीरांगनाओं का यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया. इतिहास में जौहर की गाथाओं में सबसे बड़ा जौहर चित्तौड़ के जौहर को बताया गया है. इनमें सबसे ज्यादा रानी पद्मिनी के जौहर की गाथा याद की जाती है. चित्तौड़ की रानी पद्मिनी ने 26 अगस्त 1303 को सोलह हजार क्षत्राणियों के साथ में जौहर किया था.रानी पद्मिनी का मूल रानी पद्मावती था. पद्मिनी सिंहलद्वीप के राजा रतनसेन की पुत्री थीं.
चित्तौड़ के राजा रतन सिंह से विवाह
कथाओं के अनुसार एक बार चित्रकार चेतन राघव ने सिंहलद्वीप से लौटकर राजा रतनसिंह को पद्मिनी का एक सुंदर चित्र बनाकर दिया. इस चित्र से प्रेरित होकर राजा रतनसिंह सिंहलद्वीप गए और वहां स्वयंवर में विजयी होकर पद्मिनी को अपनी पत्नी बनाकर ले आए और पद्मिनी चित्तौड़ की रानी बन गयीं.
पद्मिनी की सुंदरता, रतन सिंह के साथ खिलजी का छल
रानी पद्मिनी की सुंदरता की कहानियां अलाउद्दीन खिलजी ने भी सुनीं थीं. वह किसी भी प्रकार से पद्मिनी को पाना चाहता था. इसके लिए खिलजी ने रतन सिंह को धमकी भरा संदेश भेजा था, जिसे रतनसिंह ने उसे ठुकरा दिया. इसके बाद खिलजी धोखे पर उतर आया. खिलजी ने रतन सिंह को कहा कि वह पद्मिनी को केवल एक बार देखना चाहता है.
हिंसा टालने के लिए राजा रतन सिंह ने बात मान ली और दर्पण में रानी पद्मिनी का चेहरा खिलजी को दिखाया गया. जब वापसी पर राजा रतनसिंह खिलजी को छोड़ने द्वार पर आये. उसी समय खिलजी के सैनिकों ने धोखे से रतनसिंह को बंदी बना लिया और अपने शिविर में ले गये. शर्त रखी गयी कि अगर पद्मिनी अलाउद्दीन के पास आ जाए, तो रतनसिंह को छोड़ दिया जाएगा.
राजा के बंदी बनाए जाने और खिलजी की शर्त पर चित्तौड़ में हाहाकार मच गया, लेकिन रानी पद्मिनी ने हिम्मत नहीं हारी. खिलजी को समाचार भेजा गया कि रानी पद्मिनी अकेले नहीं आएंगी, उनके साथ पालकियों में 800 सखियां और सेविकाएं भी आएंगी.
अलाउद्दीन और उसके साथी यह सुनकर प्रसन्न हो गए. उधर पालकियों में पद्मिनी और सखियों के बदले सशस्त्र वीर बैठाये गए. जिन कहारों पालकी उठा रखी थी वो भी सैनिक थे. पालकी के मुगल शिविर में पहुंचते ही राजा रतन सिंह को उसमें बैठाकर वापस भेज दिया गया और योद्धा अपने शस्त्रों के साथ शत्रुओं पर टूट पड़े और शत्रुओं की लाशें फैल गईं. बौखलाए खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया. युद्ध में राव रतनसिंह और हजारों सैनिक मारे गये. जीत की आशा न देखने पर रानी पद्मिनी ने जौहर का निर्णय किया.
इतिहास का सबसे बड़ा जौहर
रानी पद्मिनी सभी नारियों ने सम्पूर्ण शृंगार किया. हजारों की संख्या में बड़ी- बड़ी चिताएं सजाई गयीं. ‘जय हर-जय हर’ के उद्घोष से पूरा किला गूंज उठा. सबसे पहले रानी पद्मिनी ने चिता में छलांग लगाई और फिर सभी वीरांगनाएं अग्नि में प्रवेश कर गयीं. जब युद्ध जीत कर अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मिनी को पाने की आशा से किले में घुसा, तो वहां जलती चिताएं उसे मुंह चिढ़ा रही थीं.