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Bangladesh Violence: क्या है बांग्लादेश आरक्षण आंदोलन, 1971 के मुक्तिसंग्राम की वजह से अब क्यों हो रहा है खूनी संग्राम?

Bangladesh Violence: भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंसा के बाद अब पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और देश छोड़कर सुरक्षित स्थान पर अपनी बहन संग निकल चुकी हैं। बांग्लादेश की इस हिंसा में 300 से ज्यादा जिंदगिया खत्म हुई हैं। सिर्फ आम नहीं बल्कि सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों ने भी अपनी जान गवाई है। तो सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हैं। ये हिंसा क्यों हुई और कैसे ये 1971 की याद दिलाता है, आइए जानते हैं....

Bangladesh Violence: क्या है बांग्लादेश आरक्षण आंदोलन, 1971 के मुक्तिसंग्राम की वजह से अब क्यों हो रहा है खूनी संग्राम?
Bangladesh Violence

Bangladesh Violence: भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंसा के बाद अब पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और देश छोड़कर सुरक्षित स्थान पर अपनी बहन संग निकल चुकी हैं। बांग्लादेश की इस हिंसा में 300 से ज्यादा जिंदगिया खत्म हुई हैं। सिर्फ आम नहीं बल्कि सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों ने भी अपनी जान गवाई है। तो सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हैं। ये हिंसा क्यों हुई और कैसे ये 1971 की याद दिलाता है, आइए जानते हैं....

कनेक्शन समझने से पहले अभी के हालात समझते हैं। बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी बहन के साथ ढाका छोड़कर चली गईं। उनके देश छोड़ने के बाद पद से  इस्तीफे की अटकलें लग रही हैं। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया है। रविवार को हुई हिंसा में करीब 100 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए।

बांग्लादेश में कैसे शुरू हुई थी हिंसा?

कहानी 1971 से शुरू होती है। ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली। एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इसी आरक्षण के विरोध में इस वक्त बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं।

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यह विरोध जून महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। 15 जुलाई को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।

अगले दिन भी बांग्लादेश में हिंसा जारी रही और कम से कम छह लोग मारे गए। 16 और 17 जुलाई को भी और झड़पें हुईं और प्रमुख शहरों की सड़कों पर गश्त करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया। 18 जुलाई को कम से कम 19 और लोगों की मौत हो गई जबकि 19 जुलाई को 67 लोगों की जान चली गई। इस तरह से इस हिंसक आंदोलन के चलते अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है।

आरक्षण 1972 में दिया गया तो आंदोलन अभी क्यों हो रहा है?

1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। जून में उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।  हालांकि, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी।

मामले ने तूल और तब पकड़ लिया जब प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम के चलते छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया। प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों को 'रजाकार’ की संज्ञा दी। दरअसल, बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।

बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था पर बवाल क्यों?

दरअसल, विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण का प्रावधान था। 1972 में शुरू की गई बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था में तब से कई बदलाव हो चुके हैं। 2018 में जब इसे खत्म किया गया, तो अलग-अलग वर्गों के लिए 56% सरकारी नौकरियों में आरक्षण था। समय-समय पर हुए बदलावों के जरिए महिलाओं और पिछड़े जिलों के लोगों को 10-10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसी तरह पांच फीसदी आरक्षण धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए और एक फीसदी दिव्यांग कोटा दिया गया। हालांकि, हिंसक आंदोलन के बीच 21 जुलाई को बांग्लादेश के शीर्ष न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में अधिकतर आरक्षण खत्म कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर क्या फैसला सुनाया?

21 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने उस फैसले को पलट दिया, जिसके तहत सभी सिविल सेवा नौकरियों के लिए दोबारा आरक्षण लागू कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय में, यह निर्धारित किया गया कि अब केवल पांच फीसदी नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित होंगी। इसके अलावा दो फीसदी नौकरियां अल्पसंख्यकों या दिव्यांगों के लिए आरक्षित होंगी। वहीं बाकी बचे पदों के लिए अदालत ने कहा कि ये योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों के लिए खुले होंगे। यानी 93 फीसदी भर्तियां अनारक्षित कोटे से होंगी।

कोर्ट ने किया आरक्षण खत्म, तो क्यों हो रहा प्रदर्शन?

शुरुआत से प्रदर्शनकारी छात्र मुख्य रूप से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षित नौकरियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि इसकी जगह योग्यता आधारित व्यवस्था लागू हो। प्रदर्शनकारी इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे थे, उनका कहना है कि यह भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों के फायदे के लिए है। बता दें कि प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद माना जा रहा था कि विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आंदोलन और भी उग्र हो गया। छात्र संगठनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब विरोध प्रदर्शनों का अंत नहीं है और इन्होंने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी थी। जिसके बाद अब शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और वो देश छोड़कर भी जा चुकी हैं।