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17 गोलियां खाई फिर भी पाकिस्तानी सैनिकों से अकेले लड़ते रहें, जानिए शहीद लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज’ की शौर्य गाथा

Captain Amit Bhardwaj: कारगिल युद्ध में अकेले 17 गोलियां खाकर पाकिस्तान सैनिकों को मौत के घाट उतारने वाले और अपने साथियों को सुरक्षित युद्ध में बचाने वाले जयपुर के जांबाज लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज’ की शौर्य गाथा सबको हैरान कर देने वाली है।

17 गोलियां खाई फिर भी पाकिस्तानी सैनिकों से अकेले लड़ते रहें, जानिए शहीद लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज’ की शौर्य गाथा

Captain Amit Bhardwaj: आज यानी 26 जुलाई को पूरा देश को कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मना रहा है। कारगिल में शहीद हुए वीर सपूतों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है। आज भी कारगिल शहीदों के परिजन उन क्षणों को याद करके भावुक हो उठते हैं। राजस्थान वीर सपूतों की धरती कहलाती है, देश की रक्षा में यहां के लाल अपने प्राणों का बलिदान करने से पीछे नहीं हटते। कारगिल युद्ध में राजस्थान के तकरीबन 60 जवान शहीद हुए थे और शहीदों के परिवार वालों के दिलों में आज भी शहादत की यादें कारगिल विजय दिवस के रूप में जिंदा है। इन्ही में से एक है जांबाज लेफ्टिनेंट ‘अमित भारद्वाज’। जिन्होनें कारगिल युद्ध में अकेले 17 गोलियां खाकर पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। और खुद के प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लिया लोहा

जयपुर के गुलाबी नगर के रहने वाले कैप्टन अमित भारद्वाज 17 मई 1999 को कारगिल युद्ध में काकसर क्षेत्र में बजरंग चोटी पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। शहीद अमित भारद्वाज का पार्थिव देह परिवार को 60 दिन बाद मिला। यूनिट के जवानों ने परिवार को बताया कि अपनी यूनिट के साथियों को बचाने के लिए शहीद अमित भारद्वाज 17 गोली खाकर भी आखिरी क्षणों तक दुश्मनों से लड़ते रहे। शहीद अमित भारद्वाज के साथ ही उनका एक सिपाही भी आखरी दम तक दुश्मनों से लड़ता रहा।

देश के लिए कुर्बान की जान

कैप्टन अमित भारद्वाज ने महज 27 साल की उम्र में कारगिल की लड़ाई में देश के लिए अपनी जान कुर्बान की थी। शहीद कैप्टन अमित भारद्वाज के माता-पिता का कहना है कि अमित शुरू से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे लेकिन कभी भी उन्होंने घर में यह इच्छा जाहिर नहीं की कि वह पढ़ लिखकर भारतीय सेना में अधिकारी बनेंगे। आज भी उनके परिवार ने घर में शहीद की यादों को जीवंत रखा है।

बचपन से ही कुछ बड़ा बनने का सपना

अमित भारद्वाज का बचपन से ही सपना था कि उसे अपने जीवन में कुछ बड़ा करना है। जब बचपन में हवाई जहाज उड़ते देखता था तो पायलट बनने को बोलता था। जब बचपन में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखा तो उनसे प्रभावित होकर उनकी तरह बनने का सपना देखा। फिर अमित ने एक दिन अपने परिवार में कहा कि भगवान के आगे सभी लोग सिर झुकाते हैं तो मुझे भी अब भगवान बनना है। उसके बाद अमित ने कभी कुछ शेयर नहीं किया कि उसे अपने जीवन में क्या बनना है। स्कूल, कॉलेज हो गया लेकिन शुरू से उसका हेल्पिंग हैंड बहुत था जब वो तकरीबन 20 साल का था तब उसने अपनी डायरी में लिखा था कि मैं नोवल पढ़ रहा हूं गॉड फादर और मुझे पढ़ने के बाद में लग रहा है कि मुझे भी उन्हीं की तरह बड़ा बनना है और मुझे देश के लिए कुछ बड़ा करना हैं। अमित को ये बाद समझ में आ गई थी कि इसके लिए उसे पुलिस फोर्स ज्वाइन करना होगा या फिर आर्मी। अमित ने अपनी डायरी में यह भी लिखा था कि जो आपके मन में है वह किसी को मत बताइये आपका कर्म ही आपको यह चीज आगे बताएगा कि आप क्या कर रहे हैं|अमित भारद्वाज का आर्मी में सलेक्शन तो हुआ लेकिन उसका इंटरव्यू नहीं निकला। दूसरी बार जब उसने जब इंटरव्यू दिया उसे मेडिकल का टेंपररी रिजेक्शन मिला था। हालांकि कठिन संघर्षों के बाद भी अमित भारद्वाज ने कभी अपनी हिम्मत नहीं हारी और एक दिन वह इंडियन आर्मी में सेलेक्ट हो ही गए।

देश के लिए गौरव का प्रतीक हैं कारगिल शहीद

कारगिल शहीद अमित भारद्वाज की तरह ही ऐसे कई वीर सपूत हुए जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और हमेशा–हमेशा के लिए अमर हो गए। ऐसे वीर सपूत न केवल पूरे देश के लिए गौरव का प्रतीक हैं बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी। कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती पर भारत रफ्तार सभी शहीदों को नमन करता है।

रिपोर्ट- अभिषेक जोशी