Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

और देखें
वेब स्टोरी

चुनाव में सब जायज है, वसुंधरा राजे ने क्यों सही भाई की खिलाफत

जब एक भाई ने अपनी ही बहन का सियासी दांव पलटना चाहा. भाई के ऐसे कदम से न केवल बहन को झटका लगा बल्कि मां की उम्मीदें भी टूट गईं. बाद में यही बहन राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी और न केवल मुख्यमंत्री बल्कि भाजपा में एक तेज तर्रार नेता के तौर पर अपने आपको उसने स्थापित किया.

चुनाव में सब जायज है, वसुंधरा राजे ने क्यों सही भाई की खिलाफत

वो दौर था 1984 के चुनाव का, चुनाव ऐसा की जब एक भाई ने अपनी ही बहन का सियासी दांव पलटना चाहा. भाई के ऐसे कदम से न केवल बहन को झटका लगा बल्कि मां की उम्मीदें भी टूट गईं. बाद में यही बहन राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी और न केवल मुख्यमंत्री बल्कि भाजपा में एक तेज तर्रार नेता के तौर पर अपने आपको उसने स्थापित किया. यहां बात हो रही है वसुंधरा राजे सिंधिया और उनके भाई माधव राव सिंधिया की.

 भिंड से चुनाव मैदान में उतरीं थीं वसुंधरा

1984 में चंबल की अहम लोकसभा सीट भिंड-दतिया में भी चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह चुनाव पहला आम चुनाव था. तब राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1984 में भिंड-दतिया सीट से अपनी बेटी वसुंधरा राजे को चुनाव मैदान में उतारा था. यह चुनाव वसुंधरा का पहला चुनाव था. विजयाराजे सिंधिया इसी सीट से भारतीय जनसंघ की टिकट पर 1971 के लोकसभा चुनाव में चुनाव जीत चुकी थीं. ऐसे में वह वसुंधरा की जीत को लेकर थीं.

भाई ने बहन के सामने उतारा प्रत्याशी

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब वसुंधरा के भाई माधवराव सिंधिया की एंट्री चुनाव मैदान में होती है. यह ऐसा चुनाव था जब वसुंधरा के भाई माधवराव ने उनके खिलाफ दतिया राजघराने के कृष्ण सिंह जूदेव को चुनाव मैदान में उतारा. कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे कृष्ण देव सिंह जूदेव के पास राजनीतिक अनुभव भी नहीं था. वसुंधरा की तरह कृष्ण देव का भी पहला चुनाव था. वसुंधरा के चुनाव की कमान विजयाराजे ने संभाली तो कृष्ण सिंह की चुनाव की कमान माधवराव सिंधिया ने.

आंसुओं ने बदला समीकरण

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह पहला आम चुनाव था. कांग्रेस को लेकर देशभर में माहौल पहले ही बना हुआ था. कृष्ण सिंह जूदेव के आंसुओं ने भी चुनाव के समीकरण को बदला. वह कई बार जनसभाओं में उन्होंने बड़े ही भावुक तरीके से जनता से वोट की अपील की. किला चौक पर अपनी आखिरी जनसभा के दौरान तो यहां कृष्ण सिंह जूदेव रो ही पड़े. दूसरी ओर सबको यही उम्मीद थी कि वसुंधरा ही जीतेंगी, लेकिन कृष्ण सिंह जूदेव की अपील ने जनता के दिल में अपनी जगह बना ली और वसुंधरा राजे को 87,403 मतों से हरा दिया.