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अजमेर दरगाह का शिव मंदिर होने का दावा, ASI सर्वे की मांग, मंदिर के दावे पर अदालत का नोटिस

अजमेर दरगाह को लेकर विवाद फिर उभर आया है। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि यह स्थान पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था। इस दावे पर अजमेर सिविल कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर सभी पक्षों को नोटिस जारी किए हैं। अब अदालत ने 5 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

अजमेर दरगाह का शिव मंदिर होने का दावा, ASI सर्वे की मांग, मंदिर के दावे पर अदालत का नोटिस

राजस्थान की प्रसिद्ध अजमेर दरगाह एक बार फिर चर्चा में है। इस बार विवाद हिंदू संगठनों द्वारा किए गए दावे को लेकर है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की यह दरगाह पहले संकट मोचन महादेव मंदिर थी।अजमेर सिविल कोर्ट (वेस्ट) ने इस मामले में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। अब यह मामला न्यायालय की प्रक्रिया में आ गया है और अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।

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क्या है मामला?

हिंदू संगठनों का वर्षों से मानना है कि अजमेर दरगाह की जगह पर पहले शिव मंदिर था। वकील विष्णु जैन ने सिविल जज सीनियर डिविजन मनमोहन चंदेल की अदालत में याचिका दायर की थी। याचिका में यह मांग की गई है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से दरगाह के क्षेत्र का सर्वेक्षण कराया जाए ताकि यह पता चल सके कि यहां कभी शिव मंदिर था या नहीं।

इतिहास और दस्तावेजों का हवाला

याचिका में 1911 में प्रकाशित ‘हर विलास शारदा’ नामक पुस्तक का उल्लेख किया गया है। इस किताब में दावा किया गया है कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था, जहां नियमित पूजा और जलाभिषेक होता था। इसके अलावा, दावा किया गया है कि दरगाह के बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे का उपयोग किया गया है।

मामला कैसे बढ़ा?

यह विवाद नया नहीं है। वर्ष 2022 में महाराणा प्रताप सेना ने भी इस मुद्दे को उठाया था। उस समय राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से दरगाह की जांच कराने की मांग की गई थी, जिसमें कहा गया था कि दरगाह की खिड़कियों पर स्वास्तिक के निशान मिले हैं। हालांकि, उस समय इन दावों की कोई पुष्टि नहीं हो पाई थी और राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।

अदालत की कार्रवाई

सिविल कोर्ट ने 5 दिसंबर तक सभी पक्षों से जवाब दाखिल करने को कहा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह ऐतिहासिक स्थल वास्तव में शिव मंदिर था और इसे दरगाह में बदल दिया गया। उनकी मांग है कि दरगाह की मान्यता को रद्द कर हिंदू समाज को यहां पूजा-अर्चना करने का अधिकार दिया जाए।