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कांग्रेस की हार का पोस्टमार्टम, क्यों पार्टी को करना पड़ा हार का सामना, मंथन हुआ शुरू

राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस को 7 में से 6 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है, जिससे पार्टी में खलबली मच गई है। हार के लिए टिकट वितरण में सांसदों पर निर्भरता, परिवारवाद, और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पार्टी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार और स्थानीय नेताओं के साथ तालमेल सुधारने की सख्त जरूरत है।

कांग्रेस की हार का पोस्टमार्टम, क्यों पार्टी को करना पड़ा हार का सामना, मंथन हुआ शुरू

राजस्थान में हाल ही में हुए 7 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस की भारी हार ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया है। जहां लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस से बेहतर नतीजों की उम्मीद थी, वहीं अब इस हार के कारणों की गहराई से समीक्षा की जा रही है। टिकट वितरण से लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी तक, कई मुद्दे उभर कर सामने आए हैं, जिन पर पार्टी को आत्ममंथन करने की जरूरत है। इस पर सभी नेताओं के कामकाज को भी खंगाला जा रहा है।

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टिकट वितरण में सांसदों पर निर्भरता बनी हार का बड़ा कारण

जयपुर में टिकट वितरण के लिए हुई बैठक केवल औपचारिकता बनकर रह गई है। राजस्थान में कांग्रेस 10 सालों से ज्यादा समय से काम कर रही है, जिसके बाद इसकी इस हार काफी चौंकाने वाली है। कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सांसदों की सिफारिशों को टिकट वितरण का आधार बनाने का फैसला लिया, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी फैल गई। झुंझुनू, देवली उनियारा, और दौसा जैसी सीटों पर उम्मीदवारों का चयन सांसदों की सिफारिशों के आधार पर किया गया, जबकि स्थानीय स्तर पर मजबूत नेताओं को दरकिनार कर दिया गया।

परिवारवाद और कार्यकर्ताओं की अनदेखी से गहराई हार

कांग्रेस की हार के पीछे परिवारवाद और स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को प्रमुख कारण माना जा रहा है। रामगढ़ सीट पर स्वर्गीय जुबैर खान के बेटे को टिकट देना सहानुभूति कार्ड खेलना था, जबकि अन्य मजबूत विकल्पों पर विचार ही नहीं किया गया। खींवसर सीट पर कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ आखिरी समय में कमजोर रणनीति अपनाई, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।

थिंक टैंक की निष्क्रियता और कार्यकर्ताओं में निराशा

कांग्रेस का थिंक टैंक इस हार के दौरान पूरी तरह निष्क्रिय नजर आया। नाराज नेताओं को मनाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। कार्यकर्ताओं में गुस्सा और हताशा का माहौल है। पांच महीने पहले लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद, पार्टी उपचुनाव में रणनीतिक फैसलों में विफल रही।

कांग्रेस को चाहिए नए नेतृत्व का जोश

कांग्रेस को अपनी रणनीतियों पर दोबारा काम करने की जरूरत है। निष्क्रिय नेताओं को सक्रिय करना और स्थानीय कार्यकर्ताओं को शामिल करना बेहद जरूरी है। आने वाले निकाय और पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के लिए पार्टी को फुल-टाइम प्रभारी और सशक्त नेतृत्व की जरूरत होगी।