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Jaisalmer News: जाने कौन हैं डॉ. इकबाल सक्का, शक्कर से छोटे साइज के चश्मे और खड़ाऊं बना रच दिया विश्व रिकॉर्ड

महात्मा गांधी की 155वीं जयंती पर उदयपुर के स्वर्ण शिल्पी डॉ. इकबाल सक्का ने शक्कर के दाने से छोटे गांधी चश्मे, खड़ाऊं और नाव का मॉडल बनाकर विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। ये सभी कलाकृतियां मात्र 1 मिलीमीटर की हैं और इन्हें माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है।

Jaisalmer News: जाने कौन हैं डॉ. इकबाल सक्का, शक्कर से छोटे साइज के चश्मे और खड़ाऊं बना रच दिया विश्व रिकॉर्ड

महात्मा गांधी की 155वीं जयंती के अवसर पर उदयपुर के प्रसिद्ध स्वर्ण शिल्पी डॉ. इकबाल सक्का ने एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने शक्कर के दाने से भी छोटे दो गांधी चश्मे, खड़ाऊं, साबरमती नदी पार करने वाली नाव का मॉडल और चप्पू तैयार कर सबको चौंका दिया।

इस अद्वितीय कला से उन्होंने न केवल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नीदरलैंड की कंपनी के सबसे छोटे चश्मे के रिकॉर्ड को तोड़ा, बल्कि अपनी कलात्मक प्रतिभा का भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

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कैसे बनाया चश्मा

डॉ. सक्का ने सफेद कांच की सूक्ष्म कटिंग करके गांधी चश्मे के लेंस भी तैयार किए हैं, जिन्हें केवल माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है। ये सभी कलाकृतियां मात्र 1 मिलीमीटर की हैं और उनका वजन केवल 0.010 मिलीग्राम है, जो इतना हल्का है कि तौलने पर भी वजन महसूस नहीं होता। इस असाधारण काम को पूरा करने में उन्हें 7 दिन लगे।

सूक्ष्म कलाकृतियों को गांधी संग्रहालय में करेंगे डोनेट

डॉ. सक्का की योजना है कि इन सूक्ष्म कलाकृतियों को महात्मा गांधी की पुश्तैनी हवेली, जो अब एक संग्रहालय में तब्दील हो चुकी है, को भेंट करें। इसके लिए उन्होंने गांधी संग्रहालय पोरबंदर की कमेटी को पत्र भी लिखा है। इसके अलावा, एक चश्मा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेंट करेंगे, जिसे उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के उपलक्ष्य में राजस्थानवासियों की ओर से समर्पित करने की योजना बनाई है।

सूक्ष्म कलाकृतियों को देख लोग हुए हैरान

उदयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों जैसे दूध तलाई, मोती मगरी, सहेली की बाड़ी और फतेह सागर पर जब डॉ. सक्का ने अपने लेंस की मदद से इन सूक्ष्म कलाकृतियों को पर्यटकों को दिखाया, तो लोग हैरान रह गए और उनकी कलाकारी की सराहना करने लगे। डॉ. सक्का ने बताया कि उनका सपना है कि उनकी इन सूक्ष्म कलाकृतियों के लिए एक विशेष म्यूजियम बने, जहां देश-विदेश के पर्यटक इन्हें देखने आ सकें।

कौन है डॉ. सक्का

डॉ. सक्का ने अपने दादाजी के समय से सोने-चांदी के जेवर बनाने का काम सीखा। बचपन में अपने पिता को यह काम करते देख वे इस कला में रुचि लेने लगे और 12 साल की उम्र में उन्होंने इस दिशा में कदम रखा। धीरे-धीरे उन्होंने छोटे आकार की वस्तुएं बनाने में महारत हासिल कर ली। उन्होंने बताया कि सूक्ष्म वस्तुओं को बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें चींटी के 100वें हिस्से जितने छोटे टुकड़ों को जोड़ना पड़ता है।