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अब कौन गाएगा ‘केलवा के पात पर…बिहार कोकिला का 72 साल की उम्र में निधन, पूरे देश में शोक की लहर

शारदा सिन्हा छठी मइया के गीत गाकर अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गई थीं और उसी छठ पूजा के पहले दिन उन्होंने उन्हें अपने पास बुला लिया था।

अब कौन गाएगा ‘केलवा के पात पर…बिहार कोकिला का 72 साल की उम्र में निधन, पूरे देश में शोक की लहर

बिहार के सुपौल के लिए आज काली रात है। यहां की बेटी और मशहूर भोजपुरी गायिका शारदा सिन्हा का आज दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। इस खबर से उनके पैतृक गांव सुपौल के राघोपुर प्रखंड के हुलास में मातम पसर गया है। पूरा सुपौल गहरे दुख और सदमे में है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक यहां हर कोई यही पूछ रहा है कि छठी मइया को कौन जगाएगा। अब कौन गाएगा..

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'केलवा के पात पर उगले सूरजमल...'?

उनके बीमार होने की खबर आने के बाद से ही सुपौल जिले में जगह-जगह हवन यज्ञ किए जा रहे हैं। लोग उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं। शारदा सिन्हा छठी मइया के गीत गाकर अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गई थीं और उसी छठ पूजा के पहले दिन उन्होंने उन्हें अपने पास बुला लिया था। लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर पर लोक गायिका मैथिली ठाकुर ने प्रतिक्रिया दी है। राजेश पंडित कहते हैं कि देश-दुनिया में छठी मइया के गीत लाउडस्पीकर पर खूब बजाए जाते हैं। लेकिन इन गीतों को देश-दुनिया तक पहुंचाने का श्रेय शारदा सिन्हा को जाता है. शारदा सिन्हा के निधन की खबर से उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग सदमे में हैं. उनका कहना है कि शारदा सिन्हा ने कई गीत गाए हैं, लेकिन उन्हें असली पहचान छठी मइया के गीतों से ही मिली.

भोजपुरी समाज की लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत

शारदा सिन्हा का गांव से भावनात्मक लगाव था, यही वजह है कि उन्हें छठी मइया के गीतों का पर्याय माना जाता था. वह भोजपुरी समाज की लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत रही हैं. वहीं हुलास गांव के लोगों का कहना है कि इतनी शोहरत हासिल करने के बाद भी शारदा सिन्हा गांव के लोगों के लिए आज भी बेटी और बहन ही थीं.

उनकी कई यादें आज भी यहां मौजूद

गांव वालों के मुताबिक शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुलास में हुआ था और उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की थी. आज भी गांव में उनका पुश्तैनी घर मौजूद है. लंबे समय से रख-रखाव के अभाव में खपरैल का यह घर खंडहर बन चुका है. हालांकि, उनकी कई यादें आज भी यहां मौजूद हैं. इसी घर के पास उनके भाई नए घर में रहते हैं. जबकि उनके अन्य भाई गांव से बाहर रहते हैं. उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही सभी भाई हुलास को छोड़कर दिल्ली चले गए। शारदा सिन्हा ने 22 साल की उम्र में अपना पहला भोजपुरी गाना गाया था।