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Jaisalmer News: पोकरण की लाल मिट्टी से बनेंगे इतने करोड़ के दीये, दीपावली पर जगमगाएंगे कुम्हारों का घर

यहां बनने वाले दीये और मूर्तियां सिर्फ़ स्थानीय बाजार ही नहीं सजाते, बल्कि जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और फलोदी जैसे दूर-दराज के इलाकों तक भी पहुंचते हैं। इससे इन परिवारों को दीपावली के त्यौहार पर अच्छी आमदनी होती है।

Jaisalmer News: पोकरण की लाल मिट्टी से बनेंगे इतने करोड़ के दीये, दीपावली पर जगमगाएंगे कुम्हारों का घर

पोकरण में दीपावली की रौनक दस्तक दे चुकी है और इसके साथ ही कुम्हारों के घरों में भी चाक घूमने लगे हैं। लाल मिट्टी से आकार लेते दीये और गणेश-लक्ष्मी की छोटी-छोटी प्रतिमाएं, इन कुम्हार परिवारों के लिए रोशनी और खुशहाली की उम्मीद लेकर आई हैं।

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पोकरण के कुम्हारों की दीपावली

श्राद्ध पक्ष खत्म होते ही नवरात्रि के शुभारंभ से ही यहां दीपावली की तैयारी शुरू हो जाती है। कुम्हार समाज के लोग पोकरण की प्रसिद्ध लाल मिट्टी से दीये, मूर्तियां और अन्य सजावटी सामान बनाकर बाजार सजाने में जुट जाते हैं। जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आती है, काम में तेजी आ जाती है और घरों के आंगन मिनी कारखानों में तब्दील हो जाते हैं।

कुम्हारों को अच्छी आमदनी की आस

यहां बनने वाले दीये और मूर्तियां सिर्फ़ स्थानीय बाजार ही नहीं सजाते, बल्कि जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और फलोदी जैसे दूर-दराज के इलाकों तक भी पहुंचते हैं। इससे इन परिवारों को दीपावली के त्यौहार पर अच्छी आमदनी होती है। करीब 100 कुम्हार परिवार भवानीपोल क्षेत्र में इस रोशनी के कारोबार से जुड़े हैं, जिनमें से प्रत्येक परिवार को एक लाख रुपये से ज़्यादा की कमाई होने की उम्मीद है। इस हिसाब से पोकरण के कुम्हार इस दीपावली करीब एक करोड़ रुपये का व्यापार करेंगे।

पोकरण की लाल मिट्टी की अपनी एक अलग पहचान है। इससे बने कलात्मक बर्तन और खिलौने देश-विदेश में मशहूर हैं। ये खिलौने देश के बड़े शहरों में लगने वाले हाट बाजारों की शान होते हैं। दीपावली पर तो इन दीयों की मांग और भी बढ़ जाती है।

कैसे बनते हैं मिट्टी से दिए और बर्तन

ख़ास बात ये है कि दीये बनाने के लिए मिट्टी भी पोकरण के ही रिण क्षेत्र से लाई जाती है। चिकनी और लाल रंग की ये मिट्टी दीये बनाने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सरकार ने कुम्हार समाज के लिए रिण क्षेत्र में कुछ खसरे भी आरक्षित कर रखे हैं। यहां से मिट्टी लाकर, उसे कुटा जाता है, छानकर पानी में भिगोया जाता है। फिर इस चिकनी मिट्टी से दीये और अन्य सामान बनाए जाते हैं।

पारंपरिक हुनर को बढ़ावा : कुंभकार हस्तकला

कुंभकार हस्तकला विकास समिति के जिला प्रभारी सत्यनारायण प्रजापत बताते हैं कि नवरात्रि से ही दीये और मूर्तियों का निर्माण शुरू हो गया था और अब बिक्री भी शुरू हो चुकी है। उन्हें उम्मीद है कि इस दीपावली अच्छी आमदनी होगी। वे ये भी कहते हैं कि अगर सरकार कुम्हारों को और ज़्यादा सहायता प्रदान करे, तो इस पारंपरिक हुनर को और भी बढ़ावा मिलेगा और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी। इस तरह, दीपावली के दीयों की रोशनी के साथ-साथ, पोकरण के कुम्हारों के घरों में भी खुशहाली की रोशनी फैलेगी।