Rajasthan News: उपचुनाव जीत से चमके भजनलाल शर्मा के सितारे,किरोड़ीलाल मीणा की छुट्टी ? समझें गणित
राजस्थान उपचुनावों में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के बाद सीएम भंवरलाल शर्मा की मजबूत हुई स्थिति। क्या बदलेंगे राजस्थान बीजेपी के सियासी समीकरण? जानिए किरोड़ीलाल मीणा और अन्य नेताओं के भविष्य पर क्या होगा असर।
राजस्थान में हुए उपचुनावों के बाद सीएम भजनलाल शर्मा की पीठ थपथपाई जा रही है। उनके लिए ये चुनाव एक लिटमस टेस्ट की तरह था। जहां उन्हें खरा उतरना था, जो लोग उन्हें राजनीति का कच्चा खिलाड़ी समझ रहे थे। आखिरकार वह भी बीजेपी की अभी तक की उपचुनावों में हुए ऐतिहासिक जीत से हैरान हैं। बता दें, एक साल पहले सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पार्टी लोकसभा चुनाव में ग्यारह सीटें हार चुकी थी, जिसका बड़ा कारण खराब टिकट वितरण बताया गया। ऐसे में ये उपचुनाव उनकी नेतृत्व क्षमता के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था।
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चुनौतियों से लड़े भजनलाल शर्मा
खैर, सीएम भजनलाल शर्मा ने इस चुनौती को न केवल सफलतापूर्वक पार किया, बल्कि अपनी राजनीतिक स्थिति को भी मजबूत किया। उनकी राह में खड़ी अड़चनें काफी हद तक समाप्त होती नजर आ रही हैं। दरअसल, राजस्थान में सतीश पूनिया और राजेंद्र राठौर अलग औहदा रखते हैं हालांकि वह पहली ही मुख्याधारा से अलग हो चुके थे। सतीश पूनिया को हरियाणा विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी गई थी, जहां पार्टी को चमत्कारी जीत मिली। जिसके बाद से कयास लगाये जा रहे हैं कि पूनिया का ध्यान अब केंद्र की राजनीति पर होगा और राज्य की सियासत पर उनका हस्तक्षेप दायरे में होगा।
किरोड़ीलाल मीणा की सियासत पर सवाल
जब बात राजस्थान में बीजेपी के बड़े नेताओं की आती है तो सबसे पहले किरोड़ी लाल मीणा का नाम लिया जाता है। चाहे प्रशासन हो या फिर शासन वह अपनी बात कहने से बिल्कुल नहीं चूकते हलेकिन उपचुनाव में भाई को मिली हार के बाद कयास हैं कि उनके तेवर भी नरम पड़ सकते हैं। इतनी ही नहीं कई राजनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं, उनकी रणनीति सरकार को चुनौती देने की बजाय सधी हुई भूमिका निभाने की हो सकती है। वहीं, राजेंद्र सिंह राठौर अभी साइलेंट मोड पर हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 11 सीटों पर हार का ठीकर कुछ हद तक उनके सिर पर फूटा था। इन सभी समीकरणों के चलते बीजेपी अब सीएम भजनलाल के इर्द-गिर्द सिमटती नजर आती है। सबसे बड़ी बात भजनलाल शर्मा के पास केंद्र सरकार का समर्थन है। ऐसे में देखना बहुत दिलचस्प होगा वह राजस्थान में अपने विकास एजेंडे को किस हद तक आगे बढ़ा पाते हैं और राज्य में पार्टी को संगठित करने में कितने सफल रहते हैं।