Vishvaraj v/s Lakshyaraj: महाराणा प्रताप के वंशजों में क्यों मचा हुआ है घमासान? क्या होती है धूणी दर्शन की परंपरा!
Vishvaraj v/s Lakshyaraj Singh: नए महाराणा के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा है। इसके बाद राजा को एकलिंग जी मंदिर में भी दर्शन करने होते हैं। राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ भी धूणी दर्शन और एकलिंग मंदिर जाने के लिए मेवाड़ सिटी पैलेस पहुंचे थे, लेकिन उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से रोक दिया गया।
Vishvaraj v/s Lakshyaraj Singh: राजस्थान के उदयपुर के राजघराने में हुए विवाद की चर्चा पूरे देश में है। महाराणा प्रताप का परिवार कहा जाने वाला राजपरिवार संपत्ति के विवाद को लेकर सुर्खियां बटोर रहा है। जिसकी शुरुआत सालों पहले हुई थी। इस विवाद का कारण क्या था और किसका राजगद्दी पर अधिकार है, चलिए समझते हैं....
क्यों हुआ विवाद
इतिहास जानने से पहले ये जान लीजिए कि सोमवार को राजस्थान में महाराणा प्रताप के वंशज और उदयपुर के राजपरिवार के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म पर बवाल हो गया। राजतिलक को लेकर विश्वराज सिंह और उनके चाचा के परिवार के बीच विवाद बढ़ गया है। महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने विश्वराज के राजतिलक पर नाखुशी जताई है। ऐसे में राज तिलक की परंपरा निभाने से रोकने के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस के गेट बंद कर दिए गए थे।
जानकारी के मुताबिक, चित्तौड़गढ़ का उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ। इसके बाद विश्वराज सिंह उदयपुर सिटी पैलेस में स्थित धूणी माता के दर्शन करना चाहते थे। लेकिन मौजूदा समय में सिटी पैलेस के ट्रस्टी विश्वराज सिंह मेवाड़ के चाचा अरविंद सिंह हैं। आपको बता दें, मेवाड़ के पूर्व राजघराने की नई पीढ़ियों में मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है। इनका मैनेजमेंट 9 ट्रस्ट के पास है। राजघराने की गद्दी को संभालने के लिए महाराणा भगवत सिंह ने महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन’ संस्था शुरू की थी।
क्या है धूणी दर्शन की परंपरा
उदयपुर जिला प्रशासन के मुताबिक, नए महाराणा के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा है। इसके बाद राजा को एकलिंग जी मंदिर में भी दर्शन करने होते हैं। राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ भी धूणी दर्शन और एकलिंग मंदिर जाने के लिए मेवाड़ सिटी पैलेस पहुंचे थे, लेकिन उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से रोक दिया गया।
दशकों पहले शुरु हुआ था विवाद
विश्वराज और लक्ष्यराज दोनों ही सिसोदिया राजवंश से ताल्लुक रखते हैं। सिसोदिया राजवंश वही है, जिसमें राणा कुम्भा, राणा सांगा और महराणा प्रताप जैसे महावीर हुए हैं। दोनों राजकुमार महाराणा प्रताप के खानदान से हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मेवाड़ में साल 1955 में भगवंत सिंह महाराणा बने। उनके जीवनकाल में ही संपत्ति को लेकर ये विवाद शुरू हो गया था। जब भगवंत सिंह ने मेवाड़ में अपनी पैतृक संपत्तियों को बेचना या लीज पर देना शुरू किया, तो यह बात उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह को पसंद नहीं आई। जिसके बाद महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ केस दायर कर दिया, जिससे नाराज होकर भगवंत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्ज्यूक्यूटर बना दिया। साथ ही महेंद्र सिंह को ट्रस्ट और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया।
महेंद्र सिंह के परिवार और उनके अलग हुए छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच तभी से विवाद चल रहा है। अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। आपसी पारिवारिक विवाद के बीच अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह ने इसे पूरी तरीके से गैरकानूनी कहा है। अरविंद सिंह मेवाड़ का कहना है कि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के जरिए चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें दे रखा है। ऐसे में राजगद्दी का अधिकार मेरे और मेरे बेटे (लक्ष्यराज सिंह) का है।