विधायक बनने के बाद भी आसान नहीं रेवंत डांगा की राह, हनुमान बेनीवाल की इन चुनौतियों से पाना होगा पार !
राजस्थान उपचुनाव में रेवंत डांगा ने हनुमान बेनीवाल के गढ़ खींवसर में जीत दर्ज की। क्या डांगा बेनीवाल की तरह लोकप्रिय नेता बन पाएंगे? जानिए इस खबर में।
राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने पांच सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इसी कड़ी में 3 दिसंबर को स्पीकर वासुदेव देवनानी ने विधायकों को शपथ दिलाई। इस दौरान सबकी नज़रें हनुमान बेनीवाल के गढ़ में सेंध लगाने वाले रेवंत डांगा पर रही। वह खास अंदाज में विधानसभा पहुंचे। उन्होंने विधानसभा आने के लिए ट्रैक्टर का सहारा लिया। उपचुनाव में जीत के बाद बीजेपी फूली नहीं समा रही है। सबसे ज्यादा खुशी तो खींवसर सीट को लेकर है। जहां से डांगा ने हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल को करारी शिकस्त दी। ऐसे में सवाल है, भले रेवंत चुनाव जीत गए हो लेकिन क्या वे हनुमान बेनीवाल की तरह पापुलैरिटी हासिल कर पाएंगे? क्या वह आमजन क नेता बन पाएंगे?
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परिवारवाद से रहना होगा दूर !
हनुमान बेनीवाल खींवसर किंग कहे जाते हैं। 2008 से लेकर 2023 के बीच में वह चाहे लोकसभा हो या फिर विधानसभा एक भी चुनाव नहीं हारे लेकिन इस उपचुनाव में रेवंत डांगा ने बेनीवाल का किला ठहा दिया। बताया जाता है हनुमान बेनीवाल की हार का मुख्य कारण परिवारवाद रहा। 2018 के उपचुनावोंमें उन्होंने भाई नारायण बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया तो 2023 के उपचुनाव में कनिका बेनीवाल को। इससे पहले यहां से हनुमान बेनीवाल विधायक थे। ऐस में रेवंत डांगा के सामने सबसे बड़ी चुनौती परिवारवाद से दूर रहने की होगी।
बेतुकों बयानों से बनानी होगी दूरी !
हनुमान बेनीवाल राजस्थान में अपना जनाधार रखते हैं लेकिन उनके ऐसे कई बयान वायरल हुए जिसे कहीं ना कहीं लोगों में नाराजगी देखने को मिली। उदाहरण के लिए सचिन पायलट की हैसियत क्या है, राजस्थान में गोविंद डोटासरा तो मेरे पैर पकड़ता है, हरीश चौधरी का डीएनए खराब है। दिव्या मदेरणा का परिवार अशोक गहलोत के आगे ठुमके लगाता है। ज्योति मिर्धा का कोई वजूद नहीं है। रेवंत डांगा तो मेरे बूट पॉलिश करता था। ऐसे कई बयान आपको सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे जो उपचुनाव के दौरान खूब वायरल हुए थे जिसे हनुमान बेनीवाल के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी थी। ऐसे में रेवंत डांगा इससे सबक ले सकते हैं।
हनुमान बेनीवाल की जगह लेंगे डांगा?
रेवंत डांगा ने भले हनुमान बेनीवाल का गढ़ जीतकर एक मुश्किल कम कर दी हो लेकिन उनके आगे अभी चुनौतियां बरकरार है। हनुमान बेनीवाल जनता के नेता कह जाते हैं। वह एक बुलावे पर कहीं भी पहुंच जाते हैं। ऐसे में क्या रेवंत दंगा जनता के बीच ऐसी ही छवि बनाने में कामयाब हो पाएंगे। क्या वह जनता के लिए ऐसे ही खड़े होंगे जैसे हनुमान बेनीवाल खड़े होते थे। ऐसे कई विषय है जिस पर सब की नजरे रहेगी। ऐसे में आने वाले वक्त में देखना दिलचस्प होगा शिष्य गुरु के पदचिह्नों पर चलकर जनता की सेवा करता है, या फिर कोई नई रणनीति अपनाता है।