Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

Heeramandi Review: तवायफों और उनकी तमन्नाओं के खेल में आजादी की लड़ाई का तड़का है हीरामंडी

हीरामंडी तवायफें और उनकी तमन्नाओं के खेल में आजादी की लड़ाई का तड़का अच्छा ही स्वाद लेकर आता है। हालांकि इस हिस्से का ट्रीटमेंट कहानी में थोड़ा फीका लगता है। लेकिन ये कहना होगा कि हीरामंडी की असल जान तवायफों का पूरा संसार है, जो हर तरह से आपको बांधे रखने में कामयाब होता है।

Heeramandi Review: तवायफों और उनकी तमन्नाओं के खेल में आजादी की लड़ाई का तड़का है हीरामंडी
Heeramandi Review

पिछले लंबे समय से हीरामंडी की रिलीज का इंतजार था। गानों में दिखाई गई दुनिया को देखने के बाद से इसका इंतजार और भी बढ़ गया। कई बार लंबी स्टार कास्ट की स्क्रीन पर मौजूदगी, निर्माता के क्रेडिट को खा जाती है। लेकिन हीरामडी के मामले में, संजय लीला भंसाली के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है। हीरामंडी के मामले में जिक्र से लेकर सुर्खियां तक में संजय लीला भंसाली का नाम हर जगह दिखा। स्क्रीन पर भी जब आप हीरामंडी के फिल्मानें के अंदाज, म्यूजिक, सटीकता और ठहराव को देखेंगे, तो शायद आप संजय लीला भंसाली को याद करेंगे।

फिल्म रिव्यू की शुरुआत में ही, जब निर्माता का नाम इतनी बार लिख दिया जाए, तो शायद पढ़ने वाले को पहली झलक में लग सकता है कि इस रिव्यू का लेखक निर्माता से काफी इंप्रेस है। लेकिन हीरामंडी को अपनी तसल्ली देने वाले अंदाज में निर्देशक साहब सजा सके हैं या नहीं, चलिए फिल्म के बारे में बात करके जानते हैं।

हीरामंडी’ की कहानी साल 1920 से शुरू होती है। लाहौर के इस इलाके से तवायफें रानियां हैं। फिल्म में सेट से लेकर किरदारों के आउटफिट तक सबकुछ शिद्दत से तैयार किया गया है। बड़े डायरेक्टर की पहचान ही यही से शुरु होती है कि वो इसे ‘डिज़ाइन’ के तौर पर नहीं, बल्कि ‘क्राफ्ट’ की तरह दिखाते हैं।

फिल्म को लेकर कुछ लोग नाराज भी है, उनका कहना है कि फिल्म में नैतिकता पर सवाल है। दरअसल, फिल्म की शुरुआत में एक तवायफ अपनी बहन के बच्चे को, कीमत लगाकर बेचती दिखती है। ये सीन अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।  

फिर करीब10-15 साल की लीप गैप दिखाते हैं। यहां मल्लिकाजान हीरामंडी की भाषा में ‘गुरूर’ की स्पेलिंग हैं। अपनी बेटी, बिब्बोजान की गायकी को रिकॉर्ड करके मशहूर करने का ऑफर लाए एक अंग्रेज को वो अपना कद बताते हुए वो कहती हैं- ‘हम चांद हैं, जो दिखता तो खिड़की से है मगर किसी के बरामदे में नहीं उतरता’! चांद तो मल्लिकाजान हैं… जिसपे वो मेहरबान हैं, उसकी रात पूनम कर दें. और जिसपर खफा हो जाएं, उसकी अमावस। मनीषा कोइराला इन दो विपरीत ध्रुवों के बीच इस सहजता और शालीनता से शिफ्ट करती हैं कि उनका क्राफ्ट अविश्वसनीय लगता है। बिब्बोजान, अदिति राव हैदरी के हिंदी प्रोजेक्ट्स में उनका सबसे बेहतरीन किरदार है। मल्लिकाजान की छोटी बेटी आलमजेब की दिलचस्पी तवायफ बनने में नहीं, शायरी में है। शरमीन सहगल इस किरदार में कमाल की वल्नरेबल और मासूम कास्टिंग है।

मल्लिकाजान के खजाने में एक रज्जो है। पांव से सर तक एक नवाब का इश्क, मल्लिकाजान से सीखी ठसक और नशे की सनक में डूबी इस तवायफ के रोल में ऋचा चड्ढा एक अलग रंग में हैं। अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वहीदा कोई भी साजिश कर सकती है। मल्लिकाजान और उनकी चार साथियों के साथ नौकरानियां, एक ड्राईवर और एक नौकरानी की लड़की है।

सोनाक्षी सिन्हा ने फरीदन का किरदार निभाया है। फरीदन बदला कैसे लिया जाता है, वो बताती है। अब वो किस बात का बदला लेने आई है ये आप कहानी में देखें, वो ही मुनासिफ होगा। भंसाली ने हीरामंडी का जो संसार तैयार किया है, वो आपको लगातार बांधे रखता है। हालांकि इसकी स्पीड थोड़ी स्लो होती लगेगी। हीरामंडी में दिलचस्पी आपको पूरी तरह बांधे ही रहती है लेकिन हैं मोहब्बत की बात जब आती है, कहानी में कुछ कमजोरी दिखाई देती है।

हीरामंडी तवायफें और उनकी तमन्नाओं के खेल में आजादी की लड़ाई का तड़का अच्छा ही स्वाद लेकर आता है। हालांकि इस हिस्से का ट्रीटमेंट कहानी में थोड़ा फीका लगता है। लेकिन ये कहना होगा कि हीरामंडी की असल जान तवायफों का पूरा संसार है, जो हर तरह से आपको बंधे रखने में कामयाब होता है।