Rajasthan News: अजमेर दरगाह में शिव मंदिर के दावे पर मचा बवाल, विवाद पर बढ़ रही बयानबाजी
अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे पर विवाद बढ़ता जा रहा है। अदालत ने याचिका को स्वीकार कर सभी पक्षों को नोटिस जारी किए हैं, जिससे राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी है, जबकि पूजा स्थल अधिनियम 1991 की व्याख्या पर भी चर्चा हो रही है।
अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर हाल ही में शिव मंदिर के दावे पर विवाद तेज हो गया है। भाजपा नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इसे “चाय के प्याले में तूफान” करार दिया है। उन्होंने कहा कि मामला अभी अदालत में विचाराधीन है और कोर्ट ने केवल नोटिस जारी किया है। ऐसे में पहले से निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं होगा।
ये भी पढ़ें- टीकमसिंह राव के 23 ठिकानों पर आयकर विभाग की बड़ी कार्रवाई, 45 किलो सोना और 4 करोड़ कैश जब्त
कोर्ट में याचिका, अगली सुनवाई 20 दिसंबर को
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब हिंदू सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की सिविल अदालत में याचिका दायर की। याचिका में दरगाह परिसर के भीतर संकट मोचक महादेव मंदिर होने का दावा किया गया है। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं और सुनवाई की अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है।
राजनीतिक बयानबाजी तेज
इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। भाजपा के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि ऐतिहासिक साक्ष्य मंदिरों की उपस्थिति की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया। वहीं, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और असदुद्दीन ओवैसी ने इस विवाद पर अपनी नाराजगी जाहिर की।
पूजा स्थल अधिनियम और विवाद
1991 के पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के तहत धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने का प्रावधान है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सर्वेक्षण की अनुमति देकर इस अधिनियम की व्याख्या पर चर्चा को नया मोड़ दिया है।
दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
ईरान से आए सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना निवास बनाया था। उनके सम्मान में मुगल सम्राट हुमायूं और अकबर ने दरगाह का निर्माण कराया। यह दरगाह आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।