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ASI पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान मिले मौर्य कालीन और महाभारत कालीन के समय के अवशेष

डीग जिले के वहज गांव में ASI पुरातत्व विभाग के द्वारा गांव के बीचों बीच एक टीले पर खुदाई के दौरान महाभारत और मौर्य काल के समय के ढाई हजार साल से भी ज्यादा पुराने अवशेष मिले हैं। जैसे की कुंड धातु के औजार ,सिक्के मौर्यकालीन प्रतिमा का सिर, शुंग कालीन अश्वनी कुमारो की मूर्ति पलक हड्डियों से बने उपकरण और महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तन के टुकड़े व अन्य अवशेष मिले हैं। खुदाई के दौरान ASI टीम ने अभी मीडिया कर्मियों से और आने वाले गांव के लोगो से दूरी बना रखी है और कुछ दिखाने और बोलने को लेकर कैमरे के सामने नहीं आ रहे हैं।

ASI पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान मिले मौर्य कालीन और महाभारत कालीन के समय के अवशेष

डीग जिले के वहज गांव में ASI पुरातत्व विभाग के द्वारा गांव के बीचों बीच एक टीले पर खुदाई के दौरान महाभारत और मौर्य काल के समय के ढाई हजार साल से भी ज्यादा पुराने अवशेष मिले हैं। जैसे की कुंड धातु के औजार ,सिक्के मौर्यकालीन प्रतिमा का सिर, शुंग कालीन अश्वनी कुमारो की मूर्ति पलक हड्डियों से बने उपकरण और महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तन के टुकड़े व अन्य अवशेष मिले हैं। खुदाई के दौरान ASI टीम ने अभी मीडिया कर्मियों से और आने वाले गांव के लोगो से दूरी बना रखी है और कुछ दिखाने और बोलने को लेकर कैमरे के सामने नहीं आ रहे हैं।

30 फुट के गहरे दो कुंडो की खुदाई जारी

ASI टीम के द्वारा अभी तक 30 फुट के करीब गहरे दो कुंडो की खुदाई की जा चुकी है जिसमें प्राचीन रूप की ईटों की दीवार और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े अवशेष निकल रहे है ASI पुरातत्व विभाग टीम के द्वारा यह है खुदाई का कार्य जनवरी के माह से चल रहा है खुदाई अभी लगातार जारी है और अंदेशा लगाया जा रहा है कि इसमें अभी और भी प्राचीन काल के अवशेष मिल सकते हैं।

बृज क्षेत्र के अंदर 50 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद बड़े स्तर पर खुदाई का काम हुआ है, जो प्रमाण मिले हैं, वह बहुत ही विलक्षण है, पूर्व में कराई खुदाई में ऐसे प्रमाण नहीं मिले थे। वहीं, डीग जिले के आसपास क्षेत्र के लोगों के लिए यह कोथुल और आश्चर्य का विषय बना हुआ है। सभी ग्रामीण लोग इन प्राचीन कालों के अवशेषों को निकालने के बाद अलग-अलग रूप से अनुमान लगा रहे हैं, जिसको देखने के लिए दूर दराज से लोगो का आना-जाना बना हुआ है।

जनवरी में खुदाई शुरू होने के बाद से, उन्हें और उनकी टीम को शुंग काल के हड्डी के उपकरण, हाथियों पर सवार देवताओं के चित्रों वाली मिट्टी की मुहरें, चित्रित ग्रे वेयर संस्कृति (1,100 और 800 ईसा पूर्व) से एक दुर्लभ टेराकोटा पाइप और एक मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) की टेराकोटा की मातृ देवी मिली है। दीवार के किनारे 45 डिग्री के कोण पर जली हुई ईंटें, जो मौर्य काल की हो सकती हैं। एक और दिलचस्प खोज प्रत्येक स्तर पर मिलने वाले सैकड़ों छोटे मोती थे, जिनमें पूर्व-मौर्यकालीन भी शामिल थे, जिनका निर्माण संभवतः साइट पर किया गया होगा। गुप्ता कहते हैं, “गुजरात पत्थरों की कटाई और पॉलिश करने का मुख्य केन्द्र था। ऐसा लगता है जैसे कच्चा माल वहां से लाकर यहां बनाया जाता था।”

महज़ 500 मीटर x 500 मीटर की माप वाली एक बस्ती बहज, दो दशकों से अधिक समय से एएसआई की नज़रों में है। खुदाई स्थल वर्तमान में राजस्थान के डीग जिले में स्थित है, लेकिन प्राचीन काल में यह गोवर्धन पहाड़ी का हिस्सा था। यह क्षेत्र 84 कोस परिक्रमा सर्किट का भी हिस्सा है, जो लगभग 250-270 किमी की परिक्रमा तीर्थयात्रा है जिसे हिंदुओं के बीच पवित्र माना जाता है।

रिपोर्ट: कपिल वशिष्ठ