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किसी भी काम में मन नहीं लग रहा ! मन की शांति चाहिए तो इस दरगाह जरूर जाइए, जानिए कैसे पहुंचे

दरगाह मध्यकाल से ही हिंदू और इस्लाम के अनुयायियों द्वारा पूजे जाने वाले आस्था के एक प्रमुख स्थल के रूप में रही है. दुनिया भर से हर दिन यहां तादात में तीर्थयात्री यहां आते हैं और मंदिर में चादरें चढ़ाते हैं. तीर्थयात्री गुलाब की पंखुड़ियाँ भी चढ़ाते हैं, जिनकी कुल संख्या हर दिन सात टन तक है.

किसी भी काम में मन नहीं लग रहा ! मन की शांति चाहिए तो इस दरगाह जरूर जाइए, जानिए कैसे पहुंचे

भारत में अजमेर शरीफ दरगाह को सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है और यह अजमेर का एक प्रसिद्ध स्थल भी है. फारस के सूफी संत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की यहां दरगाह है. उनकी धर्मनिरपेक्ष शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए, इसके दरवाजे सभी धर्मों के लोगों के लिए खुले हैं.

अजमेर शरीफ दरगाह है दुनिया भर में फेमस 

अजमेर के सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक अजमेर दरगाह एक सूफी दरगाह है, जिसे राजस्थान के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जो एक फारसी सूफी संत थे, अपने धर्मनिरपेक्ष उपदेशों के कारण इस स्थान पर प्रतिष्ठित हैं.

हिंदू और मुस्लिम एकता की प्रतीक

अजमेर शरीफ दरगाह मध्यकाल से ही हिंदू और इस्लाम के अनुयायियों द्वारा पूजे जाने वाले आस्था के एक प्रमुख स्थल के रूप में रही है. दुनिया भर से हर दिन यहां तादात में तीर्थयात्री यहां आते हैं और मंदिर में चादरें चढ़ाते हैं. तीर्थयात्री गुलाब की पंखुड़ियाँ भी चढ़ाते हैं, जिनकी कुल संख्या हर दिन सात टन तक है.इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था। यह सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है।

सुल्तान गयासुद्दीन ने कराया निर्माण
इतिहासकारों के मुताबिक, सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने लगभग 1465 में अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण कराया था। बाद में मुगल बादशाह हुमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने इस दरगाह का जोर-शोर से विकास किया। इसके साथ ही यहां कई संरचनाएं और मस्जिदें भी बनाई गईं।

दरगाह समिति के माध्यम से संचालन

इसका संचालन दरगाह समिति के माध्यम से किया जाता है, जो भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा गठित एक वैधानिक निकाय है।