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'सोनी जी की नसियां', 104 सालों से बंद हैं कमरे

सोनी जी की नसिया अलग पहचान है. इसका निर्माण सन 1865 में रायबहादुर सेठ मूलचंद जी सोनी ने कराया और 1871 में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के स्वर्ण पंचकल्याणक की रचना मनाई गई. 

'सोनी जी की नसियां', 104 सालों से बंद हैं कमरे

अजमेर में जैन संस्कृति की अनमोल धरोहर देखने को मिलती है. यहां सोनी जी की नसिया अलग पहचान है. इसका निर्माण सन 1865 में रायबहादुर सेठ मूलचंद जी सोनी ने कराया और 1871 में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के स्वर्ण पंचकल्याणक की रचना मनाई गई. इसके बाद 1875 में नसियां की स्थापना कर दी गई . इसके बाद दो पंचकल्याणक की रचना निर्मित तो हुई लेकिन उसे प्रदर्शित नहीं किया गया फिर 1895 में इसकी स्थापना कर दी गई. आज 140 वर्षों बाद यह कमरे आज भी बंद हैं.

लेकिन अब प्रथम हस्तिनापुर राजा श्रेयांश के जरिए  भगवान आदिनाथ को प्रथम आहार का दृश्य और द्वितीय भगवान के आकाश गमन का दृश्य और इंद्र द्वारा 225 स्वर्ण कमल की रचना यह अब लोगो को दिखाई जाएगी. भगवान ऋषभदेव के अंतिम समवशरण कैलाश पर्वत पर 72 स्वर्णिम जिनालय की रचना भी प्रदर्शित की जाएगी .अजमेर में हर साल महावीर जयंती और धार्मिक कार्यक्रमों में निकलने वाले स्वर्णिम रथ, घोड़ा, हाथी को भी स्थाई रूप से प्रदर्शित किया जाएगा. इसका भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया जा रहा है.

सोनी की नसियां का इतिहास
सोनी जी की नसियां, अजमेर में स्थित एक जैन मंदिर है. करौली के लाल पत्थरों से बना यह दिगंबर मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर है. मंदिर 1864-1865 ईस्वी में बना है. इसे बनाने में 25  साल का समय लगा. इसका निर्माण जयपुर के कारीगरों ने किया. लाल पत्थरों से बना होने के कारण इसे ‘लाल मंदिर’ कहा जाता है. इसमें एक स्वर्ण नगरी भी है. जिसमें जैन धर्म से जुड़े पौराणिक दृश्य, अयोध्या नगरी, प्रयागराज को विराट रूप से दिखाए गए.  इसके मुख्य कक्ष को ‘स्वर्ण नगरी’ कहा जाता है. इस कक्ष में सोने और लकड़ी की अनेक रचनाएं हैं. कक्ष में अयोध्या का भव्य चित्रण है जिसमें एक हजार किलो सोने का उपयोग हुआ. अयोध्या नगरी में सुमेरु पर्वत का निर्माण भी किया गया था. यह स्वर्ण नगरी अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है.