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आखिर अजमेर की इस मस्जिद को क्यों कहते हैं अढाई दिन का झोपड़ा, क्या सच में कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने यहां......

हां संस्कृत विद्यालय के 12वीं शताब्दी के अंत में दिल्ली के कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने मूल इमारत को आंशिक रूप से नष्ट कर दिया और एक मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया. एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज तृतीय को हराने के बाद मुहम्मद गोरी का राज हुआ. वहां उन्होंने भव्य मंदिरों को देखा और कुतुब-उद-दीन-ऐबक को उन्हें नष्ट करने और एक मस्जिद का निर्माण करने का आदेश दिया.

आखिर अजमेर की इस मस्जिद को क्यों कहते हैं अढाई दिन का झोपड़ा, क्या सच में कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने यहां......

हिंदू और मुस्लिम दोनों के तीर्थस्थल होने के अलावा अजमेर एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण केंद्र बना है. सूफी संत, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर दुनिया भर से मुसलमान आते हैं. वास्तव में, दरगाह को हिंदू और मुस्लिम दोनों समान रूप से पूजते हैं. इसके अलावा भी यहां कई धार्मिक स्थल हुए हैं. जिनमें से एक है अढाई दिन का झोपड़ा.

अढ़ाई दिन का मतलब
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का शाब्दिक रूप से मतलब है "ढाई दिन का शेड". यह राजस्थान के अजमेर शहर में एक ऐतिहासिक मस्जिद है और भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है.

कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने कराया निर्माण

1192 ई. में कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने इसे निर्मित कराया और हेरात के अबू बक्र ने इसे डिजाइन किया है. यह मस्जिद प्रारंभिक इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक उदाहरण है. यह संरचना 1199 ई. में पूरी हुई और 1213 ई. में दिल्ली के इल्तुतमिश ने इसका पुनर्निर्माण कराया. यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक प्रारंभिक उदाहरण है. अधिकांश इमारत का निर्माण अफगान प्रबंधकों की देखरेख में हिंदू राजमिस्त्रियों द्वारा किया गया था. मस्जिद ने अधिकांश मूल भारतीय विशेषताओं को बरकरार रखा गया.

भारत की स्वतंत्रता के बाद, संरचना को एएसआई के जयपुर सर्कल को सौंप दिया गया था और आज इसे सभी धर्मों के लोग देखने आते हैं. यह भारतीय, हिंदू, मुस्लिम और जैन वास्तुकला का मिश्रण है.

मस्जिद में परिवर्तन
स्थानीयों का कहना है कि यहां संस्कृत विद्यालय के 12वीं शताब्दी के अंत में दिल्ली के कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने मूल इमारत को आंशिक रूप से नष्ट कर दिया और एक मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया. एक स्थानीय किंवदंती के अनुसार, तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज तृतीय को हराने के बाद मुहम्मद गोरी का राज हुआ. वहां उन्होंने भव्य मंदिरों को देखा और कुतुब-उद-दीन-ऐबक को उन्हें नष्ट करने और एक मस्जिद का निर्माण करने का आदेश दिया. यह सब 60 घंटों के भीतर यानी ढाई दिन में होना था. कारीगर 60 घंटे के समय में पूरी मस्जिद का निर्माण नहीं कर सके, लेकिन केवल ईंटों की ऐसी दीवार बना सके जहां गोरी नमाज कर सकता था. इसीलिए इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा गया.