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अजमेर लोकसभा सीट पर बीजेपी होगी रिपीट या कांग्रेस फिर मारेगी बाजी,दोनों ही पार्टियों के लिए खास है यह सीट

अजमेर लोकसभा सीट पर जीत के लिए कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है.वर्तमान की अगर बात करें तो यहां अभी इस सीट पर बीजेपी का ही कब्जा है, लेकिन राजनीतिक पिच पर कांग्रेस ही अभी मजबूत नजर आ रही है. अजमेर लोकसभा सीट पर दोनों ही पार्टियों की प्रतिष्ठा फंसी है.यहां इस समय सिटिंग सांसद बीजेपी के भागीरथ चौधरी है जो इस बार दोबारा चुनावी मैदान में है.इस लोकसभा सीट पर

अजमेर लोकसभा सीट पर बीजेपी होगी रिपीट या कांग्रेस फिर मारेगी बाजी,दोनों ही पार्टियों के लिए खास है यह सीट

अजमेर लोकसभा सीट पर जीत के लिए कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है.वर्तमान की अगर बात करें तो यहां अभी इस सीट पर बीजेपी का ही कब्जा है, लेकिन राजनीतिक पिच पर कांग्रेस ही अभी मजबूत नजर आ रही है. अजमेर लोकसभा सीट पर दोनों ही पार्टियों की प्रतिष्ठा फंसी है.यहां इस समय सिटिंग सांसद बीजेपी के भागीरथ चौधरी है जो इस बार दोबारा चुनावी मैदान में है.इस लोकसभा सीट पर

8 विधानसभाओं को मिलाकर बनी सीट

अजमेर जिले की 8 विधानसभा सीटों को मिलाकर बनी इस लोकसभा क्षेत्र में सात विधायक बीजेपी के हैं. वहीं कांग्रेस के पास इकलौती किशनगढ़ विधान सभा सीट है.देश में लोकतंत्र के गठन के साथ अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद शर्मा यहां से सांसद चुने गए थे. हालांकि उसी साल उपचुनाव भी हुआ. इसमें कांग्रेस के मुकट बिहारी लाल भार्गव सांसद बने. इसी प्रकार 1957 और 1962 के चुनाव में भी मुकट बिहार लाल भार्गव यहां से जीते. हालांकि 1967 और 71 के चुनाव में कांग्रेस यहां से बीएन भार्गव को उतारा और वह ये दोनों चुनाव जीते भी. इस सीट पर पहली बार 1977 में किसी और दल को जीत मिली. इसमें जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा सांसद चुने गए थे.

1989 में बीजेपी को मिली पहली जीत

इसी प्रकार 1980 में कांग्रेस के भगवान देव आचार्य और 1984  में विष्णु कुमार मोदी सांसद चुने गए थे. वहीं 1989 के चुनाव में पहली बार यह सीट बीजेपी की झोली में आई और रासा सिंह रावत चुनाव जीते. उन्होंने अपनी जीत 91 और 96 के चुनाव में भी कायम रखी. हालांकि 98 में कांग्रेस की प्रभा ठाकुर ने बीजेपी का विजय रथ रोकने की कोशिश की, लेकिन 1999 और 2004 का चुनाव जीत कर बीजेपी के रासा सिंह रावत ने जोरदार वापसी की. फिर 2004 में कांग्रेस ने इस सीट पर सचिन पायलट को उतारा तो यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गई. हालांकि 2014 में बीजेपी के सांवरलाल जाट और 2018 के उपचुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा चुने गए थे. 2019 में इस सीट पर एक बार फिर से बीजेपी के भागीरथ चौधरी ने वापसी की और वह वर्तमान सांसद हैं.

अजमेर लोकसभा सीट का इतिहास

राजस्थान राज्य के केंद्र में स्थित अजमेर जिला पूर्व की तरफ जयपुर और टोंक तो पश्चिम की ओर पाली से घिरा है. अरावली की वादियों से घिरा यह राजस्थान का ऐतिहासिक शहर है. इस नगर की स्थापना सातवीं शताब्दी में अजयराज सिंह चौहान ने की थी. उस समय इस शहर का नाम ‘अजयमेरु’ था. यहां 1365 में मेवाड़ का आधिपत्य हुआ. इसके बाद अजमेर 1556 में अकबर और 1770 से 1880 तक मेवाड़ राजघराने के अधीन हो गया. 1881 में अंग्रेजों ने अजमेर जीत लिया. मुगल काल में अजमेर सामरिक राजधानी थी. दरअसल यहीं पर बैठकर मुगल बादशाह राजपूत शासकों पर हमले की योजना बनाते थे.

मतदाताओं की संख्या कुछ इस प्रकार है

अजमेर लोकसभा सीट पर साढे 19 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति के हैं. इनकी संख्या करीब 363,121 है. इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या 3 फीसदी यानी 55,865 हैं. निर्वाचन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक यहां मुस्लिम मतदाता लगभग 235,631 हैं. यह संख्या कुल मतदाता संख्या के सापेक्ष करीब 12.7 फीसदी है. इस लोकसभा क्षेत्र के 66.3 फीसदी यानी 1,234,611 मतदाता ग्रामीण हैं. वहीं 627,547 यानी 33.7 फीसदी मतदाता शहरी हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1862158 थी. इनमें से 67 फीसदी लोगों ने मतदान किया था.

कौन मारेगा चुनाव में बाजी, किसे मिलेगी हार

अजमेर लोकसभा सीट की अगर बात करें तो ज्यादातर यहां कांग्रेस का ही राज रहा लेकिन बीच बीच बीजेपी ने भी यहां अपनी जीत दर्ज कराई इसलिए ये कहना गलत होगा कि कांग्रेस यहां कमजोर है वहीं मतदाताओं की स्तिथी को अगर देखा जाये तो इस सीट का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ा हुआ है वहीं जातिवाद और धर्म के नाम पर भी यहां वोट पड़ना आम बात है इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर कोई यहां चुनावी माहौल बनाने में कामयाब रहा तो जीत उसी की होगी फिलहाल जीत हार का फैसला यहां की जनता करेगी.