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आजादी के इतने सालों बाद भी पानी को तरस रहे लोग, सरकार के दावे निकले झूठे

धौलपुर, आजादी के दशकों बाद भी जिले के कई गांवों में लोग पानी जैसी मूलभूल सुविधा के लिए तरस रहे है. पीने का पानी लेने के लिए भी लोगों को कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता. जमीनी हकीकत सरकार के दावे के ठीक उलट पाई जा रही है. 

आजादी के इतने सालों बाद भी पानी को तरस रहे लोग, सरकार के दावे निकले झूठे

राजस्थान के धौलपुर जिले के भैसेना गांव  में आज भी लोगों को पीने का पानी नसीब नहीं हो पा रहा. ग्राउंड में सरकार के सारे वायदे खोखले में साबित होते नजर आ रहे हैं. पीने के पानी के लिए लोगों गांव से कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. लोगों ने बताया कि गांव के पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को तीन किलोमीट दूर से  साइकिल या सिर पर रखकर पानी का बोझा ढोना पड़ता है. जबकि ये गांव  मुख्यालय से सिर्फ पांच किलोमीटर के अंदर आता है.    

35 सालों से पानी की समस्या बनी हुई है- महिलाएं  

ग्रामीण महिलाओं बताया कि शादी होकर जब से यहां की दहलीज पर पैर रखा है. तब से पानी भरकर ला रहे हैं और आज हमें पानी भरते हुए करीब 35 साल हो गए हैं. महिलाओं ने कहा कि अगर ऐसा पता होता तो यहां की दहलीज पर पैर न रखते और सुकून की जिंदगी जी रहे होते. भैसेना गांव की रहने वाली 55 वर्षीय महिला ने बताया कि आज भी पानी के लिए 3 किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है. पानी का बोझा ढोते-ढोते बुढ़ापा नजर आने लगा है. 

सरकार की योजनाओं का नहीं मिल रहा फायदा

चंबल नदी का पानी धौलपुर से भरतपुर और अन्य जिलों के लोगों की प्यास बुझा रहा है. लेकिन जिले के सैकड़ों गांव आज भी ऐसे मौजूद है, जिन्हें चंबल का पानी नसीब नहीं है. सरकार की कई योजनाओं की हकीकत इन गांव में पहुंचकर दम तोड़ नजर आती है.

विकासशील भारत के नागरिक हैं भी या नहीं- छात्रा

वहीं स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा ने बताया कि इस गांव की कायाकल्प बदलेगी या नहीं ये तो पता नहीं है, लेकिन जब से हमने होश संभाला है तब से सुबह शाम रस्सी से खींचकर पानी भर रहे हैं. पानी की वजह से कई बार स्कूल भी लेट पहुंचते हैं और इससे पढ़ाई भी प्रभावित होती है. छात्रा ने कहा कि कभी कभी ऐसा लगता है हम विकासशील भारत के नागरिक हैं भी या नहीं..?

रिपोर्ट- राहुल शर्मा