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जयपुर में आप जंतर मंतर नहीं गए तो कही नहीं गए

जयपुर में जंतर मंतर एक दर्शनीय पर्यटन स्थल है, क्योंकि इसमें 27 मीटर की ऊंचाई के साथ दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर धूपघड़ी यानी सनडायल है। इस स्थान का निर्माण पुराने समय में खगोलीय अतिथियों को देखने के लिए और सभी तरह की खगोलीय गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया गया था। पुराने समय में जब घड़ियां और कंपास नहीं होते थे। उस समय पर जंतर मंतर में बने यह यंत्र बहुत ज्यादा उपयोग में लाए जाते थे। जयपुर के स्थित ऐतिहासिक स्थल का महत्व और ज्यादा इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यह हमें अपने पुराने समय में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक और उनके काम करने के बारे में बहुत कुछ दिखाता है।

जयपुर में आप जंतर मंतर नहीं गए तो कही नहीं गए
जयपुर में आप जंतर मंतर नहीं गए तो कही नहीं गए
जयपुर में आप जंतर मंतर नहीं गए तो कही नहीं गए

जयपुर में जंतर मंतर एक दर्शनीय पर्यटन स्थल है, क्योंकि इसमें 27 मीटर की ऊंचाई के साथ दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर धूपघड़ी यानी सनडायल है। इस स्थान का निर्माण पुराने समय में खगोलीय अतिथियों को देखने के लिए और सभी तरह की खगोलीय गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया गया था। पुराने समय में जब घड़ियां और कंपास नहीं होते थे। उस समय पर जंतर मंतर में बने यह यंत्र बहुत ज्यादा उपयोग में लाए जाते थे। जयपुर के स्थित ऐतिहासिक स्थल का महत्व और ज्यादा इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यह हमें अपने पुराने समय में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक और उनके काम करने के बारे में बहुत कुछ दिखाता है। 

जयपुर के जंतर मंतर का इतिहास

जंतर मंतर एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत है जो सीधे तौर पर यह बताती है कि पुराने समय में भी जयपुर बहुत ज्यादा विकसित नगर था। 1724 में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित, जंतर मंतर उत्तरी भारत में राजा द्वारा निर्मित पांच खगोलीय वेधशालाओं में से एक है। ज्यामितीय आकृतियों के इसके आकर्षक संयोजन ने दुनिया भर के वास्तुकारों, कलाकारों और कला इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित किया है। इसे नग्न आंखों से खगोलीय स्थितियों के अवलोकन के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह टॉलेमिक स्थितिगत खगोल विज्ञान की परंपरा का एक हिस्सा है, जो कई सभ्यताओं में आम था। 

जंतर मंतर का निर्माण क्यों किया गया

इस वेधशाला का निर्माण समय मापने एवं ग्रहों व तारों की स्थिति जानने और अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए किया गया था। यह वेधशाला वास्तु खगोलीय उपकरणों का अद्भुत संग्रह है। जिसका इस्तेमाल वर्तमान में भी गणना और शिक्षण के लिए किया जाता है। इसके अलावा इस खगोलीय वेधशाला का इस्तेमाल निरीक्षण करने समेत सूर्य के चारों ओर कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। ये सभी उपकरण ईंट और मलबे से बनाए गए हैं और चूने से प्लास्टर किया गया है। ऐसी कहानी है कि महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय आकाशीय पिंडों की गति से मोहित हो गए थे। इसलिए उन्होंने जंतर मंतर का निर्माण करवाया ताकि इनकी दूरी, स्थान और गति की गणना की जा सके। 

जंतर मंतर की संरचना व खगोलीय उपकरण

यह विशाल वेधशाला करीब 18,700 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसके निर्माण में बेहद अच्छी गुणवत्ता वाले संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है देश के पांच प्रमुख वेधशालाओं में से एक जयपुर की जंतर- मंतर वेधशाला अपनी अद्भुत संरचना और ऐतिहासिक खगोलीय महत्व की वजह से वैश्विक धरोहरों की सूची में शामिल की गई हैं। इसमें समय, मौसम एवं अंतरिक्ष संबंधी सही भविष्यवाणी करने के लिए कई अलग-अलग खगोलीय उपकरणों का उपयोग किया गया है।