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पहले वृंदावन में स्थापित थी जयपुर के सरंक्षक गोविंद देवजी मंदिर की प्रतिमा, बडी रोचक है इस मंदिर की कहानी

गोविंद देवजी मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक और भावात्मक है। बताया जाता है भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र और मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए कृष्ण स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया था। भगवान कृष्ण को समर्पित गोविंद देवजी का ये मंदिर जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर वाला मंदिर है। 

पहले वृंदावन में स्थापित थी जयपुर के सरंक्षक गोविंद देवजी मंदिर की प्रतिमा, बडी रोचक है इस मंदिर की कहानी
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राजस्थान में सबसे ज्यादा पर्यटक जयपुर में आते हैं। जयपुर आने वाले पर्य़टकों को एक बार जयपुर के आराध्य गोविंदजी का दर्शन जरुर करने चाहिए। इस मंदिर का बड़ी मान्यता है, जन्माष्टमी के दिन यहां लाखों की संख्या में भीड़ लगती है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस मंदिर की मूर्ति पहले वृंदावन में स्थापित थी। जिसको सवाई जयसिंह सेकेंड ने अपने परिवार के देवता के तौर पर जयपुर में में दोबारा स्थापित किया। ये मंदिर चंद्र महल के पूर्व में बने जननिवास बगीचे के बीच में स्थित है। अगर आप जयपुर जा रहे हैं, तो यहां आपको दर्शन जरुर करने चाहिए।

गोविंद देवजी मंदिर की स्थिति और इतिहास

गोविंद देवजी मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक और भावात्मक है। बताया जाता है भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र और मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से सुने गए कृष्ण स्वरूप के आधार पर तीन विग्रहों का निर्माण करवाया था। इसमें पहला गोविंद देव जी, दूसरा विग्रह जयपुर के श्री गोपीनाथ जी का और तीसरा विग्रह श्री मदन मोहन जी करौली का है। पहले यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित थे लेकिन 11वीं शताब्दी ईस्वी के प्रारंभ में मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हें जंगल में छिपा दिया गया था। फिर 16 वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके शिष्यों ने इन विग्रहों को खोज निकाला और मथुरा वृंदावन में स्थापित कर दिया। लेकिन जब साल 1669 में औरंगजेब ने मथुरा के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया। तब पुजारी इन विग्रहों को लेकर जयपुर भाग आए और इन तीनों विग्रहों को जयपुर में ही स्थापित कर दिया गया।

आपको बतां दें, भगवान कृष्ण को समर्पित गोविंद देवजी का ये मंदिर जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर वाला मंदिर है। जयपुर के परकोटा इलाके में सिटी पैलेस परिसर में ये स्थित है। गोविंद देवजी का मंदिर चंद्रमहल गार्डन से लेकर उत्तर में तालकटोरे तक विशाल परिसर में फैला हुआ है। साथ ही यहाँ के हॉल में बने सभा भवन को 'गिनीज बुक' में भी स्थान मिला है।

गोविंद देवजी मंदिर का वास्तुकला

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि ये सबसे कम खंभों पर टिका सबसे बड़ा सभागार है। बड़ी चौपड़ हवा महल के रास्ते सिरहड्योढ़ी दरवाज़े के अंदर स्थित जलेब चौक के उत्तरी दरवाज़े से गोविंद देवजी मंदिर परिसर में प्रवेश होता है। इस दरवाज़े से एक रास्ता कंवर नगर की ओर निकलता है। दायीं और चैतन्य महाप्रभु और बायें और हनुमान जी का मंदिर है। राम दरबार, शिवालय व माता के मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है। बायें हाथ की ओर गोविंद देवजी मंदिर में प्रवेश करने के लिए विशाल दरवाज़ा है। यहाँ मेटल डिक्टेटर स्थापित किए गए है। यहाँ से विशाल त्रिपोल द्वार से मंदिर के मुख्य परिसर में जाने का रास्ता है।

गोविंद देवजी मंदिर में नहीं चढ़ता बाहर का भोग

जयपुर का संरक्षक कहे जाने वाले गोविंद देवजी के मंदिर में 'मोदक' प्रसाद की सशुल्क व्यवस्था है। गोविंद देवजी को बाहरी वस्तुओं का भोग नहीं लगाया जाता, केवल मंदिर में बने मोदकों का ही भोग लगता है। यहां पर सात आरतीयां होती हैं, जोकि काफी प्रसिद्ध हैं।