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जैसलमेर में आधे जौहर का काला इतिहास

राजस्थान के जैसलमेर के स्वर्णिम इतिहास से लोग परिचित हैं, लेकिन इस स्वर्णिम इतिहास में भी एक काला धब्बा है. जैसलमेर के अतीत में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं. जिनके बारे में बस यही सोंचा जाता है कि काश ये घटनाएं न हुई होतीं. इन्हीं में से एक घटना आधे जौहर की थी.

जैसलमेर में आधे जौहर का काला इतिहास

राजस्थान के जैसलमेर के स्वर्णिम इतिहास से लोग परिचित हैं, लेकिन इस स्वर्णिम इतिहास में भी एक काला धब्बा है. जैसलमेर के अतीत में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं. जिनके बारे में बस यही सोंचा जाता है कि काश ये घटनाएं न हुई होतीं. इन्हीं में से एक घटना आधे जौहर की थी.जानकार कहते हैं कि इस घटना की भविष्यवाणी जैसलमेर की स्थापना से पहले की गई थी. जिसमें इस दुर्भाग्य का जिक्र मिलता है. 16वीं शताब्दी में जैसलमेर के शासक रावल लूणकरण थे. एक बार रावल को अफगान सरदार अमीर अली का संदेश मिला कि अफगान की महिलाएं जैसलमेर की राजपूताना महिलाओं से मिलने की इच्छुक हैं. इस योजना में कुछ भी हानिकारक नहीं था और दूसरे राज्य के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने का संभावित अवसर था इसलिए रावल सहमत हो गए. निर्धारित समय पर कई पालकियां जैसलमेर के महल में प्रवेश कर गईं. महिलाएं मेहमानों का स्वागत करने के लिए तैयार थीं. लेकिन जैसे ही पालकियों ने सारे सुरक्षा द्वारों को पार किया. उन पालकियों में से महिलाओं के भेष में योद्धा निकल आए. दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ.लेकिन स्थिति विपरीत थी, अफगान सैनिक जीतने वाले थे. तभी जैसलमेर के सैनिकों को साका करना और महिलाओं को जौहर करना था. जौहर के पूर्व अनुष्ठान की तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था, इतना भी समय नहीं था कि चिता भी जलाई जा सके. इस वजह से रावल के पास महिलाओं को खुद मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. वह अपनी तलवार लेकर उनके बीच में दौड़े और उन महिलाओं के गले में तलवार चला दी.इसके बाद में रावल बाहर युद्ध में मरने और मारने के लिए तैयार हुए और अधिक से अधिक अफगान सैनिकों को मारने की शपथ भी ली. रावल ने बहादुरी से लड़ना शुरू किया लेकिन अतिरिक्त बल आ जाने के कारण जैसलमेर के योद्धाओं को साका से बचाया गया. उस युद्ध में जैसलमेर के बहुत कम योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे. उन सभी ने आसानी से सरदार को छोड़कर अफगान सेना पर जीत हासिल की. कई जगह इस बात का उल्लेख मिलता है कि सरदार अमीर अली को तोप के गोले से उड़ा दिया गया था.उस दिन जैसलमेर की सेना ने भले ही जीत हासिल की थी, लेकिन कोई भी उसे जीत के तौर पर नहीं गिनेगा. क्योंकि यह वो दिन था जब भविष्यवाणी का अंतिम भाग साकार हुआ था और यह वही दिन था जब इतिहास में जैसलमेर में आधा जौहर हुआ .