Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

कोटा का वो मंदिर जो पूरी करता है बच्चों के एग्जाम पास करने की मुराद, जानिए क्यों हर दो महीने में मंदिर में कराई जाती है

कोटा के तलवंडी क्षेत्र के राधाकृष्ण मंदिर का विश्वास काफी पक्का हो चला है। यहां हर दिन 300 से ज्यादा विद्यार्थी मंदिर में आते हैं और अपने मन की मुराद लिखते है। साल 2000 में जब यहां अपनी मनोकामनाएं लिखने वाले कुछ विद्यार्थियों को आईआईटी और मेडिकल में दाखिला मिल गया, तो मंदिर काफी प्रसिद्ध हो गया। 

कोटा का वो मंदिर जो पूरी करता है बच्चों के एग्जाम पास करने की मुराद, जानिए क्यों हर दो महीने में मंदिर में कराई जाती है
Kota Manokamna Temple

भारत की सबसे बड़ी कोचिंग मंडी, जहां हर साल लाखों बच्चे अपने उज्जवल भविष्य का सपना लेकर भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं। कोटा यूं तो इन्ही कोचिंग के लिए जाना जाता है। लेकिन यहां पढ़ने वाला बच्चा कोटा की ‘विश्वास की दीवार’ पर अपनी इच्छा जरूर लिखता है। माना जाता है ऐसा करने से मनोकामना पूरी होती है। इसलिए इस मंदिर को मनोकामना मंदिर भी कहते हैं।

मनोकामना मंदिर

कोटा के इस प्रसिद्ध मंदिर को मनोकामना मंदिर क्यों कहा जाता है? और इसकी शुरुआत कब से हुई, इसका जवाब मंदिर के पुजारी किशन बिहारी ने मीडिया को ये बताया कि काफी पहले, कुछ विद्यार्थी यहां प्रार्थना करने आए थे और उन्होंने आईआईटी या मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चयनित होने की मनोकामनाएं दीवार पर लिखी थीं। कुछ महीने बाद दो विद्यार्थियों के माता-पिता मंदिर में आए और उन्होंने यह दावा करते हुए दान दिया कि दीवार पर लिखी उनके बच्चों की मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं और तब से यह एक परिपाटी बन चली है।

साथ ही पुजारी जी ने ये भी बताया कि शुरू में विद्यार्थी मंदिर की दीवार पर कहीं भी अपनी मनोकामनाएं लिख दिया करते थे और हम मंदिर को विरूपित न करने की बात कहकर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करते थे तथा उन्हें कार्रवाई की चेतावनी भी देते थे। लेकिन जब स्थानीय लोगों और विद्यार्थियों का विश्वास पक्का हो चला तब हमने मंदिर में इसके लिए समर्पित क्षेत्र बनाने का फैसला किया और उसे ‘विश्वास की दीवार’ नाम दिया।

हर 2 महीने में होती है पुताई

कोटा के तलवंडी क्षेत्र के राधाकृष्ण मंदिर का विश्वास काफी पक्का हो चला है। सालों से यहां की कहानियां अब दूर दूर तक जा पहुंची हैं। यहां विघार्थी आकर अपनी मनोकामना लिखते हैं। इसकी गिनती इतनी बढ़ गई है कि यहां मंदिर की दीवारों को हर दो महीने में मंदिर की सफेदी करवानी होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक हर दिन 300 से ज्यादा विद्यार्थी मंदिर में आते हैं और अपने मन की मुराद लिखते है।

वैसे आपको बता दें, मंदिर प्रशासन ने शुरुआत में ऐसी बातें लिखने को दीवारों को ज्यादा सीरियस नहीं लिया। लेकिन साल 2000 में जब यहां अपनी मनोकामनाएं लिखने वाले कुछ विद्यार्थियों को आईआईटी और मेडिकल में दाखिला मिल गया तो तो मंदिर काफी प्रसिद्ध हो गया। तब से मन्दिर की दीवार के आधार पर इसे ‘विश्वास की दीवार’ नाम दे दिया गया।