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राजस्थान का प्रसिद्ध त्यौहार गणगौर क्यों है इतना खास, जानिए इसकी कथा

राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध फेस्टिवल गणगौर को माना जाता है। दूर- दूर से टूरिस्ट इस फेस्टिवल का आंनद लेने के लिए आते है। राजस्थान की महिलाएं इसे बड़े प्रेम और श्रद्धा से मानती हैं। यूं तो ये फेस्टिवल होली के बाद से शुरू हो जाता है। ये करीब 18 दिन चलता है। लेकिन इसी के साथ ही आखिर के दो दिन इसकी खूब धूम होती है। इस साल 2024 में इस त्योंहार की असल धूम 10 अप्रैल से देखने को मिलेगी। क्या है इसकी मान्यता और महत्ता, आइए जानते हैं।

राजस्थान का प्रसिद्ध त्यौहार गणगौर क्यों है इतना खास, जानिए इसकी कथा
राजस्थान का गंगोर फेस्टिवल

राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध फेस्टिवल गणगौर को माना जाता है। दूर- दूर से टूरिस्ट इस फेस्टिवल का आंनद लेने के लिए आते है। राजस्थान की महिलाएं इसे बड़े प्रेम और श्रद्धा से मानती हैं। यूं तो ये फेस्टिवल होली के बाद से शुरू हो जाता है। ये करीब 18 दिन चलता है। लेकिन इसी के साथ ही आखिर के दो दिन इसकी खूब धूम होती है। इस साल 2024 में इस त्योंहार की असल धूम 10 अप्रैल से देखने को मिलेगी। क्या है इसकी मान्यता और महत्ता, आइए जानते हैं।

गणगौर की मान्यता

इस खास फेस्टिवल को लेकर मान्यता है कि गणगौर पूजन करने से विवाहित कन्याओं का सुहाग बना रहता है और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है। इसी के साथ ही जो अविवाहित लड़कियां इस व्रत को करती हैं, उन्हें सुयोग जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। गणगौर पूजा में इसकी कथा का भी बड़ा खास महत्व है, कहा जाता है कि इसके बिना पूजन अधूरा होता है।

गणगौर व्रत की कथा

गणगौर राजस्थान के साथ साथ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड और ब्रज क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। गणगौर तीज को सौभाग्य तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती संग पृथ्वी भ्रमण पर आए थे। वो दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि था। शिव -पार्वती के आने पर गांव की कुछ निर्धन महिलाएं जल, फूल और फल लेकर उनकी सेवा में पहुंच गईं।

 इसके बाद बताया जाता है कि उन निर्धन महिलाओं की सेवा और भक्ति भाव से भगवान शिव और माता पार्वती काफी प्रसन्न हुए थे। तब देवी पार्वती ने अपने हाथों में जल लेकर सुहाग रस छिड़का था और कहा कि तुम सभी का सुहाग अटल रहेगा।

 संपन्न परिवार की कथा भी है रोचक

 इसी क्रम में कथा में आगे बताया जाता है कि इसके बाद कुछ संपन्न परिवार की महिलाएं पकवानों से भरी टोली लेकर भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा करने आ गई। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि, सारा सुहाग रस तुमने निर्धन महिलाओं में बांट दिया है इन्हें क्या दोगी? तो देवी पार्वती ने कहा कि इन्हें भी मैं सौभाग्य का आशीर्वाद दूंगी। जिसके बाद माता ने अपनी एक उंगली को काटा और रक्त की कुछ बूंदें धनी महिलाओं पर छिड़क दी। ऐसे मां पार्वती ने महिलाओं को सुहाग बांटा था। कथा के बाद देवी पार्वती ने नदी किनारे बालू के ढेर से एक शिवलिंग तैयार किया और उसकी पूजा की।

 महादेव ने दिया था ये आशीर्वाद

 कथा में बताया जाता है कि शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए और माता से कहा कि चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन जो भी सुहागन महिलाएं शिव और गौरी पूजा करेगी उसे अटल सुहाग प्राप्त होगा, उनके पति की आयु लंबी होगी और कुंवारी स्त्रियों को सुयोग्य जीवनसाथी मिलेगा। इसके बाद से गणगौर पूजा की जाने लगी। गणगौर माता को गुने, चूरमे का भोग लगाया जाता है। शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और गुनों तथा सास के कपड़ो का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है।