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आप सबने ये तो बचपन से ही पढ़ा होगा कि ऊंट को राजस्थान का जहाज़ कहा जाता है। लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता शायद ही आपको पता हो

राजस्थान का जहाज़ या यूं कहिए कि रेगिस्तान का जहाज़। यहां जहाज़ का संबंध उड़ने वाले जहाज से नहीं, बल्कि मरुस्थल में चलने वाले वाहन से है और ये है रेगिस्तानी क्षेत्र में पाए जाने वाला पशु ऊंट। ऐसा इसलिए कि रेगिस्तान की रेत में अन्य कोई पशु इतनी आसानी से नहीं चल सकता। जिस कृषि वाले क्षेत्रों में बैलों का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। उसी प्रकार राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में ऊंट का प्रयोग खेती और वाहन के रूप में किया जाता है। ऊंट की कई विशेषताओं के कारण इसे रेगिस्तान का जहाज़ कहते हैं। ऊंट के पैर गद्दे दार और चौड़े होते हैं, जो रेत में नहीं धंसते। ये एक बार में काफी पानी पीकर कई दिनों तक बिना पानी पीए रह सकता है।

आप सबने ये तो बचपन से ही पढ़ा होगा कि ऊंट को राजस्थान का जहाज़ कहा जाता है। लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता शायद ही आपको पता हो

राजस्थान का जहाज़ या यूं कहिए कि रेगिस्तान का जहाज़। यहां जहाज़ का संबंध उड़ने वाले जहाज से नहीं, बल्कि मरुस्थल में चलने वाले वाहन से है और ये है रेगिस्तानी क्षेत्र में पाए जाने वाला पशु ऊंट। ऐसा इसलिए कि रेगिस्तान की रेत में अन्य कोई पशु इतनी आसानी से नहीं चल सकता। जिस कृषि वाले क्षेत्रों में बैलों का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। उसी प्रकार राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में ऊंट का प्रयोग खेती और वाहन के रूप में किया जाता है। ऊंट की कई विशेषताओं के कारण इसे रेगिस्तान का जहाज़ कहते हैं। ऊंट के पैर गद्दे दार और चौड़े होते हैं, जो रेत में नहीं धंसते। ये एक बार में काफी पानी पीकर कई दिनों तक बिना पानी पीए रह सकता है।

क्योंकि राजस्थान का ज्यादातर इलाका रेगिस्तान मतलब रेत के पहाड़ हैं। ऊंट की शारीरिक बनावट ऐसी होती हैं की वह रेगिस्तान में कई दिनों तक बिना पानी के रह लेता है। क्योंकि रेगिस्तान में पहले के जमाने में पानी की बहुत कमी थी। लोग पीने का पानी कई किलोमीटर दूर से लाते थे। पुरे गांव में 1 या 2 ही कुएं होते थे जिससे पुरा गांव पानी भरता था। कुओं से पानी निकालने के लिए ऊंट या बैलों का उपयोग किया जाता था। ऊंट को गर्मी में पसीना नहीं आता है, क्योंकि ऊंट का सामान्य तापमान 102 डिग्री है बाकी स्तनधारियों का तापमान 98 डिग्री होता है। इस तरह ऊंट पसीना नहीं निकाल कर पानी की बचत करता है।

ऊंट के पैर का राज

ऊँट पैर गद्दीदार होते हैं, जिसके कारण रेगिस्तान में चलने और भागने में कोई दिक्कत नहीं होती है, जहाँ मानव और आधुनिक गाड़ियां हार जाती हैं वहाँ ऊँट आसानी से तेजी से दौड़ सकता हैं। इसके मजबूत गद्दी दार पैर ना रेत में फंसते है ना धोरों में थकते हैं।

क्या होता है ऊंट के कूबड़ के फैट में

ऊंट के कूबड़ में फैट जमा होती है, जिसका उपयोग उस समय करते हैं, जब उन्हें कई दिनों तक खाना-पानी नहीं मिलता, तब कूबड़ में जमा फैट ही उन्हें ऊर्जा देती है। जैसे-जैसे यह फैट खत्म होता जाता है, वैसे-वैसे ऊंट का कूबड़ छोटा होकर एक तरफ झुक जाता है। लेकिन जब ऊंट भरपेट भोजन या पानी पी लेता है तो झुका हुआ यह कूबड़ फिर बड़ा हो जाता है।